रायपुर। छत्तीसगढ़ में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत ठाकुर प्यारेलाल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, निमोरा से जुड़ा एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ है, जिसमें GeM (Government e-Marketplace) पोर्टल का इस्तेमाल कर सरकारी धन की भारी लूट की जा रही है।
₹150 की चप्पल ₹1350 में, आखिर किसकी जेबें भर रही हैं?
सूत्रों के मुताबिक, विभाग ने मात्र ₹150 से ₹200 में बाजार में मिलने वाली साधारण चप्पलों को ₹1350 प्रति जोड़ी की दर से खरीदने के लिए 9 जून 2025 को ऑर्डर जारी किया। इस ऑर्डर के तहत 2,070 जोड़ी चप्पल के लिए कुल ₹27.94 लाख खर्च किए गए हैं, जिनकी आपूर्ति 8 अगस्त तक होनी है।

ट्रैकसूट, बैग, बॉटल, सबकुछ तिगुने-चौगुने दाम पर
यह मामला केवल चप्पलों तक सीमित नहीं है। विभाग ने ट्रैक सूट ₹4,000, कॉलेज बैग ₹1,500, वॉटर बॉटल ₹1,165 प्रति यूनिट की दर से 2,070-2,070 नग खरीदने के ऑर्डर दिए हैं। इन तीन वस्तुओं पर क्रमशः ₹82.8 लाख, ₹31.05 लाख और ₹24.11 लाख खर्च किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर विभाग ने इन सामानों के लिए करीब ₹1.66 करोड़ रुपए की खर्च करने की तैयारी कर ली है।

- ट्रैक सूट- ₹4,000 प्रति यूनिट, कुल खर्च: ₹82.8 लाख
- कॉलेज बैग- ₹1,500 प्रति यूनिट, कुल खर्च: ₹31.05 लाख
- वॉटर बॉटल- ₹1,165 प्रति यूनिट, कुल खर्च: ₹24.11 लाख

पहले भी हो चुकी है महंगे दामों पर खरीदी
इतना ही नहीं, 17 जनवरी 2025 को भी विभाग द्वारा ऑफलाइन दरो से ₹8.43 लाख की खरीद की गई थी, जिसमें बाज़ार भाव से कहीं ज्यादा दाम चुकाए गए।
- ट्रैक सूट- ₹1,150 प्रति नग
- वॉटर बॉटल- ₹300 प्रति नग
- कॉलेज बैग- ₹800 प्रति नग
- टी-शर्ट- ₹455 प्रति नग
- कैप- ₹1,150 प्रति नग
इन वस्तुओं की बाजार दर की तुलना में यह कीमतें दोगुनी या तिगुनी हैं, जो विभागीय कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
सवाल वही- मजबूरी या मिलीभगत?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसी कौन-सी मजबूरी है, जिसके चलते विभाग बार-बार एक जैसे सामान को बेतुकी कीमतों पर खरीदता रहा? क्या यह सिर्फ लापरवाही है या सुनियोजित भ्रष्टाचार? जिस चप्पल की कीमत ₹150-₹200 है, उसे ₹1350 में खरीदने के पीछे कौन-सी सोच या योजना है?
सवालों के घेरे में GeM पोर्टल की पारदर्शिता
जेम पोर्टल को केंद्र सरकार ने पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी सरकारी खरीद प्रक्रिया के रूप में शुरू किया था। लेकिन छत्तीसगढ़ में सामने आए इस मामले ने इसकी पारदर्शिता और निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कम कीमत में आसानी से उपलब्ध सामान की खरीदी में इतनी बड़ी राशि खर्च होना न केवल नियमों की अनदेखी है, बल्कि यह भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।