नई दिल्ली। इन दिनों अफगानिस्तान की बात हर तरफ हो रही है। तालिबान ने वहां तख्ता पलट कर दिया है और पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। वहां से राष्ट्रपति देश छोड़कर फरार हो चुके हैं। तमाम देश अफगानिस्तान से अपने लोगों को निकालने में लगे हैं।

इसी अफगानिस्तान की राजधानी है काबुल। यकीनन काबुल सुनते ही आपके दिमाग में काबुली चने घूमने लगे होंगे। हो सकता है कुछ लोग ये भी सोच रहे हों कि अब काबुली चने बाजार में मिलेंगे या नहीं? चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं काबुली चने की हकीकत…।
दरअसल, शुरुआती दौर में अफगानिस्तान के लोग देश में चने बेचते थे। वह एक अच्छे ट्रेडर थे। उन्हीं के नाम पर उनकी तरफ से बेचे गए चनों को लोग काबुली चने कहने लगे और धीरे-धीरे सफेद चनों को काबुली चने के नाम से जाना जाने लगा। यानी ये चने उगते तो भारत में ही हैं, बस उनका नाम काबुली चना पड़ गया है, क्योंकि शुरुआती दौर में इसे अफगानी ट्रेडर बेचते थे।
मीट और डेयरी प्रोडक्ट ही ज्यादा आयात होते हैं अफगानिस्तान से
काबुली चने का अफगानिस्तान से सिर्फ नाम का ही रिश्ता है। वहां पर काबुली चने उगाने की बात करें तो दुनिया के टॉप-10 देशों में भी काबुल अफगानिस्तान दूर-दूर तक कहीं नहीं है। अफगानिस्तान में लोग अधिकतर मीट और डेयरी प्रोडक्ट के अलावा चावल से बनी कई तरह की डिश खाते हैं। उम्मीद है कि अब बहुत से लोगों का ये भ्रम दूर हो गया होगा कि काबुली चने काबुल से आते थे और अब वह भी महंगे हो जाएंगे।
ड्राई-फ्रूट्स हुए महंगे
कारोबारियों की मानें तो अफगानिस्तान से बड़ी मात्रा में ड्राई-फ्रूट्स का आयात किया जाता था। पिछले करीब 15 दिनों से ये आयात बाधित हो गया है। इसकी वजह से अफगानिस्तान से पिस्ता, बादाम, अंजीर, अखरोट जैसे कई ड्राई-फ्रूट्स नहीं आ पा रहे हैं। सप्लाई घट जाने की वजह से जम्मू-कश्मीर में ड्राई-फ्रूट्स के दाम बढ़ गए हैं।
हालांकि, बहुत से विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि ड्राई-फ्रूट्स के दाम बढ़ने का अफगानिस्तान से कुछ लेना-देना नहीं है, बल्कि ये सिर्फ कारोबारियों की मिलीभगत है, ताकि कीमतें बढ़ जाएं और मौके का फायदा उठाया जा सके।
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