रायपुर। पिछले तीन वर्ष में छत्तीसगढ़ में 25 हज़ार 164 आदिवासी बच्चों की जानें गयी हैं। इन बच्चों में 13 हज़ार से अधिक नवजात शिशु और 38 सौ से अधिक छोटे बच्चे-बच्चियां थे। यह जानकारी आज सांसद रामविचार नेताम ने प्रेसवार्ता के दौरान दी।

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात यह है कि अधिकांश की मौत निमोनिया, खसरा, डायरिया जैसे आजकल मामूली समझी जाने वाली बीमारियों के कारण हुई है। इसके अलावा इस दौरान प्रदेश में 955 महिलाओं ने प्रसव के दौरान दम तोड़ दिया है। दुखद यह है कि इस गंभीरतम मुद्दे पर मुख्यमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री ने टिप्पणी तक करने से इनकार कर दिया।
उन्होंने आगे कहा कि कोरबा के सतरेंगा में पहाड़ी कोरवा सुखसिंह की पत्नी सोनी बाई कोहनी में मामूली फ़्रैक्चर के इलाज के लिए कोरबा के ज़िला अस्पताल में अपने बेटे के साथ पहुंची थी। वहां एक बिचौलिए ने उन्हें एक निजी अस्पताल भेज दिया जहां ऑपरेशन से पहले ही उक्त महिला की मौत हो गई। कोहनी के मामूली-से फ़्रैक्चर के इलाज के दौरान ही पहाड़ी कोरवा महिला को जान से हाथ धोना पड़ गया। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं क़ानून व्यवस्था में खामी का ऐसा कोई अनोखा मामला नहीं है। प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था का यह आलम है।
हमारे सरगुजा संभाग में विशेष संरक्षित पंडो जनजाति के सैकड़ों लोगों की रहस्यमय मौत इससे पहले भी हुई। वज़ह भूख और कुपोषण बताया गया। प्रदेश में बच्चों व महिलाओं की मौत ने सरकार के ऐसे कथित सुपोषण अभियान को आईना दिखाया है। प्रदेश में कथित सुपोषण अभियान भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। कुपोषण में मार्च 2021 जुलाई 2021 तक 4 प्रतिशत की वृध्दि हुई है तथा प्रदेश पोषण के मामले में 30वें स्थान पर है, इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है?
प्रदेश में 61 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक है। विधानसभा में इस बात को स्वीकारा गया है कि मार्च 2021 में कुपोषण की दर 15.15 प्रतिशत से बढ़ कर जुलाई 2021 में 19.86 प्रतिशत हो गई अर्थात जुलाई 2021 की स्थिति से कुपोषण की दर में 4 प्रतिशत की वृध्दि हो गई है।
केन्द्र सरकार द्वारा करीब 1500 करोड़ रुपए कुपोषण के खिलाफ जारी लड़ाई के लिए दिए गए तो वहीं लगभग 400 करोड़ रुपए सुपोषण अभियान के लिए डीएमएफ व सीएसआर मद से उपलब्ध कराई गई। प्रदेश में लगभग 3000 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी कुपोषण के खिलाफ जारी लड़ाई में प्रदेश की सरकार नाकाम रही है।
प्रदेश में बड़ी मुश्किल से भाजपा सरकार ने मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को कम करने में सफलता हासिल की थी। मातृ मृत्यु दर वर्ष 2003 में प्रति एक लाख पर 365 थी, जो 2018 तक घट कर 173 हो गई थी। इस अवधि में शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार पर 70 से घट कर 39 रह गई थी। राज्य में बच्चों के सम्पूर्ण टीकाकरण का प्रतिशत 48 से बढ़कर 76 और संस्थागत प्रसव का प्रतिशत 18 से बढ़कर 70 हो गया था। लेकिन पिछले तीन साल में बच्चों के मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ते जाना चिंताजनक है।
उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस सरकार से मांग है कि वह राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों हमारी संरक्षित जातियों, आदिवासियों समेत सभी नागरिक की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करे। साथ ही इस तरह असमय प्राण गंवाने वाले लोगों के परिजनों को राज्य शासन सांत्वना राशि प्रदान करे। हमारे पास लखीमपुर के किसानों को देने के लिए करोड़ों रूपये हैं, लेकिन अपने ही लोगों, हमारे ही गरीबों के लिए इस तरह का अकाल है प्रदेश में, यह निहायत ही भर्त्सना के काबिल है।
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