टीआरपी डेस्क। संसद भवन पर आतंकवादी हमले को आज 18 साल हो गए हैं लेकिन उस हमले के

जख्म आज भी लोगों के दिलों-दिमाग में ताजा हैं। दहशत के वो 45 मिनट कभी भुलाए नहीं जा सकते।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दोनों सदनों के सांसदों ने शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
13 दिसंबर, 2001 को सफेद रंग की एंबेसेडर कार ने इन चंद मिनटों में ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार
से पूरे संसद भवन को हिला कर रख दिया। टीवी पर हमले की खबर चलते ही पूरा देश सकते में आ गया।
लेकिन हमारे बहादुर जवानों के हाथों आतंकियों को मुंह की खानी पड़ी। आतंकियों का सामना करते हुए
दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए और
16 जवान इस मुठभेड़ में घायल हुए थे।
45 मिनट चला पूरा ऑप्रेशन :
सुरक्षाबलों ने 45 मिनट में आतंकियों को ढेर कर दिया लेकिन उसके बाद भी संसद भवन से रुक-रुक
कर गोलियां चलने की आवाज आ रही थी। दरअसल आतंकियों के चारों तरफ फैलने की वजह से
जगह-जगह ग्रेनेड गिरे हुए थे और वह थोड़ी-थोडी देर में ब्लॉस्ट कर रहे थे। थोड़े ही समय में बम निरोधक
दस्ते ने बम को निष्क्रिय किया और संसद अब पूरी तरह सुरक्षित था।
सेना की वर्दी में हुए दाखिल :
आतंकियों ने सेना की वर्दी पहन रखी थी इसलिए पहले तो किसी ने उन्हें नहीं रोका लेकिन जब संसद के
गेट के अंदर दाखिल हुए तो कार की स्पीड से एएसआई जीतराम को शक हुआ। उन्होंने कार रुकवाकर
गाड़ी के ड्राइवर से बाहर आने को कहा लेकिन उसने कहा कि हट जाओ वरना गोली मार देंगे। इस पर
वे समझ गए कि ये सेना के जवान नहीं हैं। यह सब जगदीश ने देख लिया और उसने फर्ती से सभी गेट बंद
करने का मैसेज कर दिया और सभी को अलर्ट कर दिया। गृह मंत्री लालकृष्ण अडवाणी (Lalkrishna Advani)
समेत कई बड़े नेताओं को संसद के खुफिया मार्ग से सेफ जगहों पर ले जाना शुरू कर दिया। उस समय
सदन में 100 से ज्यादा सांसद मौजूद थे।
साजिश के पीछे अफजल गुरु का हाथ :
सभी पांचों आतंकी तो मारे गए लेकिन इसके पीछे मास्टर माइंड कोई और था। हमले की साजिश रचने
वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु (Afzal Guru) को दिल्ली पुलिस ने 15 दिसंबर 2001 को गिरफ्तार किया।
संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने 4 अगस्त, 2005 को
उसे फांसी की सजा सुनाई थी। उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की थी। दया याचिका को 3
फरवरी, 2013 को राष्ट्रपति ने खारिज की और 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़
जेल में फांसी दी गई।
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