रायपुर। छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष नम्रता सिंह जैन पर फर्जी अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाण पत्र के आधार पर आरक्षित सीट से चुनाव जीतने का गंभीर आरोप लगा है। इस खुलासे से जिला पंचायत की राजनीति में हलचल मच गई है और प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं।
इस संबंध में कलेक्टर से भी शिकायत की गई है। शिकायतकर्ता का दावा है कि नम्रता सिंह जैन द्वारा प्रस्तुत किया गया ST प्रमाण पत्र फर्जी है, जो तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर चन्द्रिका प्रसाद बघेल द्वारा बिना आवश्यक सत्यापन के जारी किया गया था। आरोप है कि यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।
वर्तमान में SDM, मोहला ने जांच समिति का गठन किया है, लेकिन जांच की धीमी रफ्तार को लेकर शिकायतकर्ता ने नाराज़गी जताई है और 15 दिनों के भीतर निष्पक्ष जांच की मांग की है, ताकि सत्य सामने आ सके।
कौन हैं नम्रता सिंह जैन?
नम्रता सिंह जैन, पति सचिन जैन, वर्तमान में मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। उनके पिता, नारायण सिंह, ओडिशा मूल के 1977 बैच के IAS अधिकारी थे, जिन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सेवाएं दीं। वर्ष 2025 के जिला पंचायत चुनाव में नम्रता सिंह ने ST आरक्षित सीट से चुनाव जीतकर यह पद हासिल किया था।
शिकायतकर्ता की प्रमुख मांगें
- 15 दिन में प्रमाण पत्र की वैधता, निवास और सामाजिक स्थिति की पुष्टि।
- यदि प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाए तो उसे तत्काल रद्द किया जाए।
- पंचायत राज अधिनियम की धारा 19 व 36 के तहत अध्यक्ष पद से अयोग्यता घोषित की जाए।
- BNS, SC/ST अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए।
- सभी दस्तावेज RTI अधिनियम की धारा 4 के तहत सार्वजनिक किए जाएं।
यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 342 और 243D का सीधा उल्लंघन माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय (जैसे माधुरी पाटिल बनाम अतिरिक्त आयुक्त – 1994 एवं महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद – 2001) के अनुसार, यदि कोई फर्जी ST प्रमाण पत्र के आधार पर कोई पद या लाभ अर्जित करता है, तो उसे रद्द किया जा सकता है।
मिली जानकारी के अनुसार नम्रता सिंह जैन के परिवार का 1950 से पहले छत्तीसगढ़ में कोई निवास प्रमाण, राजस्व रिकॉर्ड, ग्राम सभा प्रस्ताव या जमीन संबंधी दस्तावेज नहीं है जो ST प्रमाण पत्र हेतु अनिवार्य होते हैं। उनके पिता ओडिशा के मूल निवासी थे। संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत एक राज्य की अनुसूचित जनजाति पहचान दूसरे राज्य में स्वतः मान्य नहीं होती। बता दें कि 2000 से 2020 के बीच छत्तीसगढ़ में 758 मामलों में से 267 फर्जी ST प्रमाण पत्र पकड़े गए हैं।