टीआरपी डेस्क। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर इन दिनों अपराधों की चपेट में है। चाकूबाजी, लूटपाट और फायरिंग की घटनाएं अब शहरवासियों के लिए आम होती जा रही हैं। इसी बीच एक और चिंताजनक पहलू सामने आया है तेजी से बढ़ता गन कल्चर, जो राजधानी में कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
राजधानी में जो सक्षम हैं, खुद को हथियारों से लैस कर रहे हैं। जिनके पास संसाधन हैं, वे गन लाइसेंस ले रहे हैं, हथियार खरीद रहे हैं और अब अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2023 से अब तक रायपुर जिले में कुल 88 गन लाइसेंस जारी किए जा चुके हैं। इनमें से 43 लाइसेंस केवल 2023 में जारी हुए, जो अपने आप में सवाल खड़े करते हैं खासकर तब, जब उसी वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे।

पहले डर, फिर बंदूक, अब स्टेटस सिंबल
बंदूक अब केवल आत्मरक्षा का साधन नहीं रही, बल्कि शहर के उच्च वर्ग के लिए स्टेटस सिंबल बन गई है। सोशल मीडिया पर हथियारों के साथ बनाए जा रहे रील्स, वीडियो और फोटो अब नया ट्रेंड बन चुके हैं। नाबालिग बच्चे अपने माता-पिता की गैर-जिम्मेदार आजादी में बंदूकें लेकर घूमते हैं, और कई बार अंजाने में बड़ी गलती कर बैठते हैं जिसकी कीमत उन्हें उम्रभर चुकानी पड़ती है।

पत्रकारों पर भी तानी गई थी बंदूक
हाल ही में एक चौंकाने वाली घटना में, डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में रिपोर्टिंग के लिए पहुंचे पत्रकारों पर एक बाउंसर वसीम खान ने बंदूक तान दी। पत्रकारों के संगठित विरोध के बाद उसे गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, लेकिन यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ही सुरक्षित नहीं, तो आम जनता की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा?

‘खुली खिड़की’ से मिल रहे हैं लाइसेंस
पुलिस की निष्क्रियता और अपराधों पर लगाम न लगने के चलते लोग अब सरकार की बजाय अपने संसाधनों और जेब पर भरोसा कर रहे हैं। गन लाइसेंस अब केवल आत्मरक्षा का माध्यम नहीं, बल्कि स्टेटस और पॉवर प्रतीक बनते जा रहे हैं। विडंबना यह है कि ज्यादातर लाइसेंस उच्च और उच्च-मध्यम वर्ग को ही मिले हैं। ऐसे में सवाल उठता है जिनके पास न बंदूक खरीदने की हैसियत है, न लाइसेंस लेने की सुविधा उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?

चुनावी साल में लाइसेंस की बरसात
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2023 में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सिर्फ 9 महीनों में 43 गन लाइसेंस जारी किए गए। ध्यान देने वाली बात यह है कि चुनावी आचार संहिता अक्टूबर में लग गई थी, जिसके बाद लाइसेंस पर रोक लग गई थी। इसका सीधा अर्थ है कि चुनावी माहौल में हथियारों के लाइसेंस तेजी से बांटे गए, जो अपने आप में एक बड़ा सवाल है।
अधिक लाइसेंस जारी होने पर राष्ट्रीय शूटर की राय
धडल्ले से जारी किए जा रहे इन गन लाइसेंस के बारे में हमने रायपुर के राष्ट्रीय शूटर और छत्तीसगढ़ कल्ब के पूर्व शूटिंग कोच मो.अली चिस्ती की भी राय ली। बातचीत में मो.अली चिस्ती ने कहा कि किसी भी जिले में गन लाइसेंस कलेक्टर द्वारा ही जारी किया जाता है। उन्होंने कहा कि जिले की बागड़ोर संभालने वाले को यह पता होना चाहिए कि जिसे लाइसेंस दिया जा रहा है वो वाकई जरूरतमंद है या नहीं। लाइसेंस जारी करने के अधिक आंकड़ों के सवाल पर चिस्ती ने कहा कि लाइसेंस की संख्या से तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक उसका दुरूपयोग नहीं किया जा रहा हो।

शूटिंग का खिलाड़ी होने के नाते उन्होंने बताया कि सरकार ने आर्मस एक्ट 2016 में जिला कलेक्टर को सीधा निर्णय लेने की अनुमति दे दी है। जिसके तहत कलेक्टर किसी भी शूटिंग खिलाड़ी के दस्तानवेजों की जांच कर उन्हें ऑलइंडिया गन लाइसेंस जारी कर सकता है।