
मृगेंद्र पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार
रायपुर। पूरा देश जब दो फाड़ में है। दो विचारधाराएं लगातार हथौड़े मारकर अपना वजूद बचाने और अपना वजूद बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। उस बीच एक आम चर्चा यह निकल कर आ रही है कि आखिर हम नेहरू, इंदिरा, राजीव को क्यों याद करें।
दरअसल यह तीनों नेता भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं और कांग्रेस पार्टी इन तीनों नेताओं की उपलब्धियों के आधार पर लगातार आगे बढ़ती रही है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में या यह कहें कि पिछले कुछ सालों में यह देखने को आया है कि कांग्रेस न तो नेहरू की निति, नेहरू के विजन, नेहरू के काम को जनता के बीच रख पा रही है, ना राजीव की आधुनिक सोच को युवाओं तक पहुंचा ही पा रही है।
जबकि अपनी विचारधारा को लेकर लगातार संघर्ष करने वाली पार्टी भाजपा दो सांसदों से 303 सांसदों तक पहुंच गई। उसके पीछे एक बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि एक देश एक विधान एक निशान, अनुच्छेद 370, राम मंदिर जैसे मुद्दों को लेकर पिछले 35 साल से लगातार पार्टी संघर्ष कर रही है। उन मुद्दों पर वैचारिक रूप से लड़ रही है।
पूरे देश में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय को स्थापित करने के लिए भाजपा ने सैकड़ों उपक्रम अपनाए। छत्तीसगढ़ की बात करें तो 15 साल की सरकार में हर गांव में दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी से जुड़ी कुछ न कुछ चीजें पहुंची हैं। कहीं खेल मैदान, कहीं चौक चौराहे, कहीं लाइब्रेरी। लेकिन इन सालों में छत्तीसगढ़ी क्या पूरे देश में राजीव गांधी ,जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी के काम, नीतियों और विचारों को पहुंचाने में कांग्रेस कहीं न कहीं असफल रही है।
आज जबकि एक ताकतवर संगठन कांग्रेस को चुनौती दे रहा है। कांग्रेस मुक्त भारत की बात कर रहा है। उस दौर में कांग्रेस को अपनी जड़ों की ओर जाना चाहिए। आर्टिकल 370 पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद से लेकर सड़क तक जो बातें कही, क्या कांग्रेस को बताने की जरूरत नहीं है। इंदिरा की सिर्फ एक नीति एक काम आपातकाल को पूरे भारत में याद किया जाता है। क्या इंदिरा ने इन सालों में सिर्फ आपातकाल का ही निर्णय लिया। राजीव गांधी की आधुनिक सोच सिर्फ बयानों तक क्यों सीमित करके रख दिया गया है।
आज कांग्रेस और कांग्रेस से जुड़े लोग ही अपने नेताओं के इतिहास भविष्य और भूगोल को नहीं समझते हैं। क्या उन्हें यह बताने की जरूरत कांग्रेस संगठन को नहीं है। भाजपा तो अपने नेताओं के बारे में अपने कार्यकर्ता अपने पदाधिकारी यहां तक कि जो कार्यकर्ता नहीं है, उन्हें भी बताती है।
रायपुर के मुस्लिम बहुल इलाके का चौक रात को भी गुलजार रहता हैं। कल जब वहां बैठा और अलग-अलग समाज के नेताओं की चर्चा शुरू हुई तो सबसे पहले जो बात निकल कर आई उसमें यह था कि अब मुस्लिम समाज को भाजपा से डर नहीं लगता।
भाजपा ने तीन तलाक जैसे मुद्दों को अंजाम तक पहुंचाया लेकिन एक बड़ा वर्ग आज भी भाजपा से कटा है। चर्चा में आया कि कांग्रेस ने मुस्लिम जैसे बुनियादी वोट बैंक को मजबूती से नही पकड़ा। उनके विकास की योजनाएं, सामाजिक परिवर्तन पर कोई विचार नहीं किया। अंत में यह निष्कर्ष आया कि कांग्रेस पार्टी के नेता जनता से कट गए हैं, उनका न तो संपर्क है, ना संवाद है। भविष्य में कांग्रेस को बचे रहना है, तो जनता के बीच जाना होगा। उन से सीधा संवाद करना होगा। उसके लिए तरीके बहुत से हो सकते हैं।
भाजपा ने जिस तरह सदस्यता अभियान को लेकर पूरे देश में माहौल बनाया, उसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि सदस्यता के बहाने जनता से सीधे कनेक्ट हुए। संगठन भले ही बूथ लेबल पर ना खड़ा हो, लेकिन जनता से संवाद होना चाहिए।
जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां पॉपुलर पॉलिटिक्स की जगह ठोस काम करने होंगे। कर्जमाफी और आरक्षण जैसे लोक लुभावने वादे बुलबुले की तरह हैं। इसे नई पीढ़ी बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही है। अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, युवाओं को रोजगार देना और संगठन में कर्मठ लोगों की खोज करना, कांग्रेस के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए। गांधी, नेहरू, इंदिरा, राजीव की बातों को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए जन जागरण अभियान चलाना चाहिए।
देश में जो इन नेताओं के खिलाफ विद्वेष पैदा किया गया है। उन्हें एक विलेन के रूप में पेश करने की कोशिश की गई है। उस छवि को सच्चाई से तोड़ने की जरूरत है। नहीं तो फिर अंत में यही कहूंगा कि आखिर हम नेहरू, इंदिरा, राजीव को क्यों याद करें।