टीआरपी डेस्क। सरकार के आदेश के बावजूद IIM यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ने एक साल के MBA डिग्री कोर्स को बंद नहीं किया है। IIM इंदौर ने सोमवार 9 नवंबर को सेशन 2021-22 के लिए अपने एक साल के एग्जिक्यूटिव पोस्ट प्रोग्राम फॉर मैनेजमेंट के लिए फ्रेश एप्लीकेशन जारी कर दिए हैं।

IIM अहमदाबाद और बेंगलुरु ने भी अपनी वेबसाइटों पर इसी तरह के प्रोग्राम के लिए एप्लीकेशन मंगवाए हैं। आखिर क्यों सरकार इस कोर्स को बंद करना चाह रही है। वहीं IIM क्यों सरकार के आदेश को दरकिनार कर रहा है।

सरकार ने IIMs से क्या कहा था?

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने जुलाई के पहले सप्ताह में IIMs से कहा था कि यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) के नियमानुसार वे एक साल का पोस्ट ग्रेजुएट मैनेजमेंट डिग्री प्रोगाम नहीं चला सकते।

दरअसल, प्रीमियर इंस्टीट्यूट्स की एकेडमिक ऑटोनॉमी के लिए 2017 में IIM एक्ट पास किया गया था। जिसके तहत देश के 20 IIMs को डिग्री देने की पावर दी गई है। इस स्वायत्तता का मतलब क्या है? मतलब यह कि सरकार इन इंस्टीट्यूट्स की अकादमिक फैसले लेने की आजादी में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। सरकार की भूमिका सीमित है। वह संस्थान के निदेशकों, फैकल्टी की नियुक्ति करने और डिग्री व पीएचडी की उपाधि देने जैसे निर्णय ही ले सकती है।

क्यों इस कोर्स को बंद करने कह रही है सरकार?

इस एक्ट के पास होने के बाद से ही यह बहस चल रही है कि क्या इंस्टीट्यूट मैनेजमेंट द्वारा एक साल की पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री दी जा सकती है या नहीं? हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एचआरडी मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि IIM के इस कोर्स का सरकार यह कहकर विरोध कर रही है कि भारत में एक साल के कोर्स में डिग्री देने का प्रावधान है ही नहीं। लॉ मिनिस्ट्री ने भी सरकार को एक साल की ऐसी डिग्री के खिलाफ राय दी थी।

अधिकारियों की दलील है कि अगर IIM एक साल के एमबीए कोर्स में डिग्री देते रहेंगे तो बाकी के बिजनेस स्कूल भी यही प्रक्रिया अपना लेंगे। ऐसे में सरकार उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं पाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि IIM दूसरे मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स के बीच बहुत गलत मिसाल कायम कर रहे हैं। पिछले साल भी ये मुद्दा उठाया गया था, पर उस समय भी IIMs ने सुनने से इंकार कर दिया था।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आपत्ति इसीलिए जताई क्योंकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तहत एक साल की डिग्री का कोई प्रावधान ही नहीं है। अगर यूजीसी विशेष रूप से आईआईएम को एक साल की डिग्री की परमीशन देने का आदेश जारी करता है तो हमें कोई समस्या नहीं है.

IIM क्या दलील दे रहे हैं?

वहीं IIM के एक अधिकारी का कहना है कि IIM एक्ट में उन्हें इस तरह की स्वायत्तता दी गई है। वे कोर्स चला रहे हैं, साथ ही साथ मंत्रालय के सामने पक्ष भी रख रहे हैं। हालांकि UGC के पूर्व सदस्य मोहन कपाही ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा कि इस स्तर पर एक साल के एमबीए की पीजी डिग्री देना अकादमिक रूप से सही नहीं है। यह सच है कि 2017 से IIM को अकादमिक स्वायत्तता दी गई है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो डिग्री को ही कम कर दें। न्यू एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) में तीन या चार साल के अंडर ग्रैजुएट (यूजी) कोर्स का प्रावधान हैं। यूजी के चार साल बाद एक साल का एमबीए प्रोग्राम सही हो सकता है।

मास्टर डिग्री के लिए क्या हैं यूजीसी के नियम?

  • ग्रेजुएशन डिग्री के लिए पांच साल या तीन साल का कोर्स किया हो।
  • UGC केवल दो साल के पाठ्यक्रम के लिए ही मास्टर डिग्री की परमीशन देता है।
  • पश्चिमी देशों से इतर एक साल के कोर्स को पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा ही माना जाता है।

इससे पहले, IIM कोलकत्ता ने साल 2019 में एग्जीक्यूटिव पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (PGPEX) का नाम बदलकर मास्टर्स ऑफ बिजनेसेस एडमिनिस्ट्रेशन फॉर एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम (MBA- EP) कर दिया था। मतलब जो पहले डिप्लोमा कोर्स था, उसे एक साल के डिग्री प्रोग्राम में तब्दील कर दिया गया था। उस साल PGPEX के छात्रों को कॉन्वोकेशन में MBA- EP की डिग्री दी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोग्राम का नामकरण बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के आदेश और सहमति से किया गया था, और ये IIM एक्ट के तहत ही हुआ था।

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