तेल अवीव/येरूशलम। भविष्य में बार फिर भारत और इजराइल के बीच गाढ़ी दोस्ती होने वाली है, क्योंकि भारत समर्थक व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त बेंजामीन नेतन्याहू फिर इजरायल के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। वहां चल रहे राजनीतिक संकट के बीच इजरायल के सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री बेंजामीन नेतन्याहू को अयोग्य घोषित करने की मांग वाली याचिका खारिज करके उन्हें सरकार बनाने की इजाजत दे दी है। नेतन्याहू 13 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे।

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इस याचिका में नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था। नेतन्याहू लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री बनेंगे। इससे पहले जून 1996 में वे एक बार और प्रधानमंत्री बन चुके हैं। इस बार उनके सत्ता संभालने का विपक्षी पार्टियां लगातार विरोध कर रही थीं।

चुनाव में जीत नहीं मिली थी

मार्च में हुए संसदीय चुनाव में नेतन्याहू तीन सीटों पर बहुमत हासिल करने से चूक गए थे। दूसरी तरफ देश की दो प्रमुख पार्टियों को गठबंधन सरकार बनाने के लिए पर्याप्त वोट नहीं मिले थे। नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को 36 सीटें और उसकी (लिकुड पार्टी) अगुआई वाले राइट विंग को 58 सीटें मिली थीं।

पूर्व सेना प्रमुख बेनी गांत्ज की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी को 33 सीटें और उसकी (ब्लू एंड व्हाइट) अगुआई वाले वामपंथी गुट को 55 सीटें मिली थीं। 120 सीट वाली इजराइल की संसद में बहुमत के लिए 61 सीटों की जरूरत होती है। इसके बाद भी दोनों गठबंधन सरकार बनाने के प्रयास में जुटे थे।

भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे हैं नेतन्याहू

70 साल के नेतन्याहू इजराइल के सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री हैं। वे चार कार्यकाल में 14 साल प्रधानमंत्री रहे हैं। उनके खिलाफ 17 मार्च से भ्रष्टाचार का मुकदमा शुरू हो रहा है। उन पर धोखाधड़ी, रिश्वत लेने और विश्वासघात के आरोप हैं।

अगर वे सरकार बनाते हैं तो इजराइल के इतिहास में वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री होंगे, जो भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सरकार बनाने में कामयाब हुए। वहीं, 60 साल के गांत्ज ने अपना राजनितिक करियर दिसंबर 2018 में शुरू किया था। इससे पहले वे 2011-15 के बीच इजराइल की मिलिट्री के चीफ रहे थे।

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