रायपुर। पिता की मौत के बाद बेटे को नौकरी मिली मगर इसके बाद बेटा अपनी मां को भूल गया। मां ने अदालत की शरण ली, तब अदालत ने जो भरण पोषण की राशि तय की, उसे बेटे ने हर महीने अपनी मां को दिया, लेकिन जब सेवानिवृत्ति की बारी आई तब उसने फिर से अपनी मां का भरण-पोषण करना छोड़ दिया। इस मामले का पटाक्षेप करते हुए अनुसूचित जनजाति आयोग ने दोनों पक्षों को तैयार किया और बेटे से साढ़े 5 लाख रुपए उसकी मां को दिलवाए।

नौकरी हासिल करते ही मां की देखरेख बंद

यह मामला बालोद जिले के ग्राम खैरवाही का है, जहां की रहने वाली लक्ष्मीनबाई कोठारी ने अपनी शिकायत अनुसूचित जनजाति आयोग में की थी। लक्ष्मीबाई ने बताया कि उसके पति गंगूराम कोठारी भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी करते थे। कालांतर में उनकी मौत हो गई, जिसके बाद उनके बेटे अकबर सिंह कोठारी को अनुकंपा नियुक्ति मिली। नौकरी हासिल करने के बाद अकबर सिंह ने अपनी मां की देखरेख बंद कर दी, जिसके चलते मां को मजबूरन अपने दूसरे बेटे के साथ रहना पड़ा। बाद में लक्ष्मीन बाई ने अनुसूचित जनजाति आयोग में मामले की शिकायत की और न्याय दिलाने की मांग की, तब आयोग ने एक निश्चत राशि देने का आदेश अकबर सिंह को दिया।

कोर्ट ने बढ़ा दी मुआवजे की राशि

आयोग के फैसले से असंतुष्ट अकबर न्यायालय की शरण में चला गया, जहां कोर्ट ने आयोग द्वारा निर्धारित राशि को और भी बढ़ा दिया। तब से अकबर अपनी मां को हर महीने की तय राशि दे रहा था।

सेवानिवृत्ति के बाद मां को अपने हाल पर छोड़ा

बीएसपी में नौकरी करने तक अकबर सिंह अपनी मां लक्ष्मीन बाई को भरण पोषण की राशि देता रहा, मगर जब सेवानिवृत्ति की बारी आई, तब अकबर ने अपनी मां को फिर से अपने हाल पर छोड़ दिया, इससे परेशान लक्ष्मीन बाई ने फिर से अनुसूचित जनजाति आयोग की शरण ली जहां दोनों पक्षों से बातचीत के बाद लक्ष्मीन बाई ने एकमुश्त साढ़े 5 लाख रुपए क्षतिपूर्ति राशि लेने पर अपनी सहमति दी, जिसके बाद आयोग के कार्यालय में ही अकबर सिंह कोठारी ने अपनी मां को साढ़े 5 लाख रुपए का चेक दिलवाया। इस मौके पर अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष राजकुमारी दीवान, सदस्य नितिन पोटाई और सचिव एचके सिंह उइके भी उपस्थित थे। आयोग की इस पहल से एक बुजुर्ग महिला को न्याय मिला। अपने जीवन के आखिरी दौर में उसे पैसों का संकट नहीं होगा और वह अच्छे से अपना जीवन निर्वाह कर सकेगी।