रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम लिमिटेड में मशीन खरीदी के नाम पर शासन की राशि का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। प्रदेश में गौठान समूहों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर महंगी मिनी राइस मिले खरीदी जा रही हैं।

जबकि बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाली सस्ती मशीनें उपलब्ध हैं। ऐसा भी नहीं है कि अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन वे शासन की राशि का दुरुपयोग करते हुए 50-60 हजार रुपए तक महंगी मशीनें खरीद रहे हैं।

हाल ही में टीआरपी ने शीर्षक बीज निगम का एक और कारनामा, कोरबा में गौठानों को आर्थिक सक्षम बनाने के नाम पर हो रहा भ्रष्टाचार से इस मामले को प्रमुखता से उठाया था। ऐसा नहीं है कि अधिकारियों की मनमानी केवल कोरबा जिले में ही जारी है। प्रदेश के अन्य जिलों में मशीन खरीदी की आड़ में भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है।  

राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम द्वारा जिस कंपनी से मिनी राइस मिल की खरीदी जा रही है उसकी कीमत काफी ज्यादा है। जबकि बीज निगम के ही पोर्टल चैंप्स (champs ) में ही दूसरी कंपनियों की कीमत उसके मुकाबले बहुत ही कम है।

इन जिलों में हो रहा खनिज न्यास राशि का दुरुपयोग

प्रदेश के जिन जिलों में खनिज न्यास है, वहां गौठान समूहों के लिए मिनी राइस मिल की खरीदी की जा रही है। इन मशीनों की खरीदी रिलायबल डिस्ट्रीब्यूटर ( बासुदेव इक्विफर्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड) से की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि इस मशीन से धान की कुटाई के साथ ही गेहूं की पिसाई भी की जा सकती है। “ग्रीन स्वदेश” नामक इस मिनी राइस मिल की कीमत 1 लाख 5 हजार रुपए है। कोरबा की तरह ही इसी मिनी राइस मिल की खरीदी जांजगीर, अंबिकापुर, दंतेवाड़ा सहित कुछ अन्य जिलों में भी की गई है।

कई मशीनें हैं “चैंप्स” की वेबसाइट पर

छत्तीसगढ़ शासन के अधीन संचालित राज्य कृषि एवं बीज विकास निगम को कृषि विभाग से संबंधित सामग्रियों के लिए अधिकृत किया गया है। इस निगम की वेबसाईट पर ही “चैंप्स” का पेज बना हुआ है, जिसमें कृषि सहित इससे जुड़े दूसरे कार्यों से संबंधित अलग- अलग कंपनियों की मशीनों के बारे में जानकारी दी गई है और इनकी कीमत भी दर्शाई गई है। इसमें अगर हम मिनी राइस मिल की सूची पर नजर डालें, तो सारा खेल समझ में आ जाता है। यहां रिलायबल डिस्ट्रीब्यूटर के अलावा दूसरी कंपनियों की मशीनों की जानकारी भी उपलब्ध है। इनमें सुरजीत एग्रीकल्चर इंडस्ट्रीज की एक मिनी राइस मिल की कीमत मात्र 85 हजार रुपए है। जबकि ये मशीन भी धान कूटने और गेहूं पीसने, दोनों के काम आती है। इसी तरह एग्रोटेक कॉरपोरेशन की मशीन 53 हजार 330 रु, चतुर्भुज एग्रो फार्म की 69 हजार 825 रु और देव मोटर्स की मिल की कीमत 65 हजार 625 रु है। बीज निगम द्वारा इन्हीं में से दूसरी मशीन भी खरीदकर जिलों में दी जा सकती थी, मगर ऐसा नहीं किया गया।

आखिर किसके दबाव में हैं अधिकारी..?

बीज निगम और कृषि विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों से जब टीआरपी ने इस मुद्दे पर चर्चा की तो उन्होंने पल्ला झाड़ लिया। अधिक दर वाली मिनी राइस मिल की खरीदी के सवाल पर जिम्मेदारों ने दबी जुबान से स्वीकार किया है कि वर्तमान में सत्तापक्ष के एक विधायक के दबाव के चलते भ्रष्टाचार का यह सारा खेल खेला गया। इसके लिए रिलायबल डिस्ट्रीब्यूटर की मिनी राइस मिल में बहुत ही छोटा सा बदलाव करते हुए उसे दूसरी मशीनों से श्रेष्ठ बता दिया गया है, और उसकी खरीदी की अनुमति दे दी गई।

तकनीकी शाखा ने नहीं की थी अनुशंसा

बीज निगम में किसी भी मशीन की खरीदी के लिए यहां की तकनीकी शाखा की सलाह लिया जाना जरूरी होता है। इस शाखा के अधिकारियों ने ज्यादा कीमत वाली मशीन की खरीदी करने से मना किया था, बावजूद इसके महंगी राइस मिल ली गई जिसके लिए दबाव बनाया गया था।

चैंप्स की प्रक्रिया को किया दरकिनार

छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना “नरवा गरवा घुरवा और बाड़ी” के तहत गांव गांव में गौठान बनाए गए हैं। इन्हें चलाने वाले समूहों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए मिल की खरीदी की योजना तैयार की गई है। मशीनों की खरीदी के लिए “चैंप्स” की वेबसाइट पर ऑनलाईन आवेदन करना होता है। इसके बाद जिस भी स्थान पर मशीन लगानी होती है, “चैंप्स” द्वारा जीपीएस सिस्टम से वहां की ट्रेकिंग करने के बाद न्यूनतम दर पर मशीन की खरीदी करनी होती है। खरीदी से पहले बीज निगम द्वारा “चैंप्स” से केवल मशीनों की कीमतें ही ली गईं। बाकी प्रक्रिया बीज निगम ने खुद ही पूरी कर ली।

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