टीआरपी डेस्क। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शहर में दशहरा के मौके पर निभाई जाने वाली कुछ खास रस्में रविवार को भी निभाई गईं। प्राचीन मठ दूधाधारी और जैतूसाव मठ में पुराने अस्त्रों की पूजा की गई। रायपुर के पुलिस लाइन में मां काली के यज्ञ के बाद रायफल और पिस्टल को पूजा गया। पुलिस वाहनों पर भी फूल चढ़ाए गए। इस मौके पर परंपरा के मुताबिक एसएसपी अजय यादव ने 5 राउंड फायर किए, एके 47 से गोलियां हवा में दागी गई और काली मां के जयकारे लगाए गए।

साल में सिर्फ एक ही दिन शस्त्र दर्शन

रायपुर शहर की पुरानी बस्ती इलाके में स्थित जैतू साव मठ में दशहरे के दिन विशेष पूजा होती है। बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार दशहरा जिसमें हिंदू मान्यताओं के मुताबिक भगवान राम ने रावण का वध किया था । लिहाजा इस दिन शस्त्रों की पूजा करने की परंपरा है। पिछले 200 सालों से मठ में ये परंपरा निभाई जा रही है। मठ में प्राचीन तलवार, तीर, धनुष, त्रिशूल ,गुप्ति, कुल्हाड़ी की पूजा की जाती है। इस मठ को बनाने में 7 साल लगे थे। 1877 में यह राजस्थान के कारीगरों द्वारा तैयार किया गया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यहां महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू भी आ चुके हैं।

500 साल पुराने दूधाधारी मठ में स्वर्ण श्रृंगार

रायपुर के पुरानी बस्ती इलाके में ही दूधाधारी मठ भी है जो कि करीब 500 साल पुराना है और प्रदेश के सबसे प्राचीन मंदिरों में शामिल है। यहां पर भगवान श्रीराम को सोने के आभूषण से विशेष तौर पर सजाया गया। ऐसा श्रृंगार हर साल दशहरे पर किया जाता है। यहां पर विशेष पूजा का भी आयोजन किया गया। जैतू साव मठ की तरह यहां भी पुराने प्राचीन शास्त्रों की पूजा की जाने की परंपरा रही है।

पुलिस के शस्त्रागर से निकले हथियार

रायपुर पुलिस लाइन में शस्त्र पूजा ब्रिटिश काल से हो रही है। रायपुर एसएसपी अजय यादव ने मंत्रोच्चार के बीच पुलिस के शस्त्रों का पूजन किया। विभाग के तमाम आला अधिकारी और कर्मचारी इस पूजा में शामिल हुए। पुलिस लाइन में मौजूद एसएलआर, इनसास और एके-47 के साथ 9एमएम पिस्टल पूजा की गई। मां काली को एसएसपी ने चुनरी चढ़ाई। 18 जनवरी, 1858 की शाम इस पुलिस ग्राउंड में भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। हनुमान सिंह ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर दी थी। बाद में उन्हें अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी।

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