नई दिल्ली। भारत ने अपने मिशन शक्ति के तहत पिछले महीने ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया। इनमें डॉयरेक्टेड एनर्जी वेपंस (डीईडब्ल्यूएस) और को-आॅर्बिटल किलर्स की मौजूदगी के साथ-साथ अपने उपग्रहों को इलेक्ट्रॉनिक या फिजिकल अटैक्स से बचाने की क्षमता पैदा करने जैसे उपाय शामिल हैं।

अंतरिक्ष तकनीक की दिशा में तेजी से बढ़ रहा देश

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख जी सतीश रेड्डी ने बताया, ‘हम डीईडब्ल्यूएस, लेजर्स, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (ईएमपी) और को-आॅर्बिटल वेपंस समेत कई तकनीक पर काम कर रहे हैं। मैं इसकी विस्तृत जानकारी नहीं दे सकता, लेकिन हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।’ 27 मार्च को लो-अर्थ आॅर्बिट (एलईओ) में 283 किलोमीटर की दूरी से माइक्रोसैट- आर सैटलाइट को मार गिराने वाला एएसएटी मिसाइल दिशानिर्देशित गतिमान मारक हथियार (डॉयरेक्टसेंट, काइनेटिक किल वेपन) था। डीआरडीओ चीफ ने कहा कि अंतरिक्ष में 1,000 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकनेवाले त्रीस्तरीय इंटरसेप्टर मिसाइल की एक साथ कई लॉन्चिंग से कई उपग्रहों को भेदा जा सकता है।

बढ़ी चीन की चुनौती :

को-आॅर्बिटल वेपन मूलरूप से एक उपग्रह ही होता है जिसमें कुछ विस्फोटक, हथियार या डिवाइस लगे होते हैं। को-आॅर्बिटल वेपन को पहले अंतरिक्ष की कक्षा में रखा जाता है और फिर इससे दुश्मन के उपग्रहों को निशाना बनाया जाता है। चीन इन काइनेटिक किल वेपंस के अलावा अन्य ऐंटि-सैटलाइट वेपंस, मसलन लेजर्स जैमर्स, ईएमपी और हाई-पावर्ड माइक्रोवेव्स आदि तेजी से तैयार कर रहा है। उसने पहली बार एंटी-सैटलाइट मिसाइल का परीक्षण 2007 में एक लो-आॅर्बिट वेदर सैटलाइट को भेदकर किया था।

भविष्य की तैयारी में जुट हैं वैज्ञानिक :

सूत्रों का कहना है कि भारत प्रतिस्पर्धा में कड़ी टक्कर देने के साथ-साथ दोनों, एलईओ और जीईओ सिंक्रोनस आॅर्बिट्स, में मौजूद उपग्रहों के खिलाफ एएसएटी वेपंस विकसित करने के दूरगामी लक्ष्य पर काम कर रहा है ताकि अंतरिक्ष में अपनी बढ़ती सामरिक संपदा पर उभरते खतरों से निपट सके। एक सूत्र ने बताया, ‘हमारे सैटलाइट्स और सेंसर्स को सुरक्षा कवच प्रदान कर रहे हैं और इनका इस्तेमाल उन्हें अपने दुश्मनों से सुरक्षित रखने में किया जा सकता है।’ दूसरे सूत्र ने बताया, ‘दुश्मन द्वारा हमारे मुख्य उपग्रहों को निशाना बनाए जाने की स्थिति में सेना की मांग पर छोटे-छोटे उपग्रहों की लॉन्चिंग की योजना पर भी काम हो रहा है।’ डीआरडीओ हवा और जमीन पर विभिन्न लक्ष्यों को निशाना बनाने की क्षमता वाले हाई-एनर्जी लेजर्स और हाई पावर्ड माइक्रोवेव्स जैसे ऊएह२ पर लंबे समय से काम कर रहा है, लेकिन क्या इन्हें एएसएटी वेपंस का प्रारूप देने में सफलता मिल पाएगी, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।

फुलफ्लेज्ड एयरोस्पेस मिलिट्री कमांड की तैयारी?

डीआरडीओ चीफ जी सतीश रेड्डी ने कहा कि ऐंटि-सैटलाइट सिस्टम्स के शस्त्रीकरण (वेपनाइजेशन) या एक फुलफ्लेज्ड एयरोस्पेस मिलिट्री कमांड बनाने जैसे मुद्दे पर आखिरी फैसला सरकार को लेना है। उन्होंने कहा, ‘सैन्य क्षमता के लिहाज से अंतरिक्ष का महत्व बढ़ गया है। सुरक्षा सुनिश्चित करने का सर्वोत्तम उपाय प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना है।’ डीआरडीओ चीफ ने स्पष्ट किया कि अब फिलहाल नए ऐंटि-सैटलाइट मिसाइल परीक्षण पर काम नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘मिशन शक्ति के सफल प्रदर्शन से भारत अरअळ क्षमता वाले तीन देशों (अमेरिका, चीन और रूस) के एलिट क्लब में शामिल हो गया है।’

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