मुंबई।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने भारत की आर्थिक विकास दर पर संदेह जाहिर किया है। उन्होंने कहा कि भारत में जीडीपी आकलन की विधि में अभी भी कुछ समस्या है। गोपीनाथ से पहले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और 108 अर्थशास्त्रियों ने भारत की आर्थिक विकास दर पर संदेह जताया था।
इन अर्थशास्त्रियों के दावों से भारत सरकार को झटका लग सकता है क्योंकि इसके वरिष्ठ अधिकारी लगातार दलीलें देते रहे हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों को विश्व बैंक और आईएमएफ जैसे वैश्विक संगठनों ने स्वीकार किया है।
गोपीनाथ ने बताया, ‘हम नए आंकड़ों पर गहनता से नजर बनाए हुए हैं। हम भारत में अपने सहकर्मियों से बातचीत कर रहे हैं, जिसके आधार पर हम निर्णय लेंगे।’ हालांकि उन्होंने आधार वर्ष समेत 2015 में जीडीपी आकलन में किए गए बदलाव का स्वागत किया, लेकिन वास्तविक जीडीपी के आकलन में उपयोग किए जोन वाले अपस्फीतिकारक (डीफ्लैक्टर) पर चिंता जाहिर की है।
गोपीनाथ ने कहा, ‘भारत के राष्ट्रीय आय खातों के आंकड़ों के आधुनिकीकरण के तहत वर्ष 2015 में किए गए संशोधन आवश्यक थे, इसलिए उनका निश्चित रूप से स्वागत है। लेकिन फिर भी कुछ समस्याएं हैं जिनका समाधान होना चाहिए। वास्तविक जीडीपी के आकलन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अपस्फीतिकारक को लेकर हमने पहले भी चिंता जाहिर की थी।’
गौरतलब है कि गीता गोपीनाथ से पहले भी कई विशेषज्ञों ने बेरोजगारी और विकास दर के आंकड़ों पर संदेह जाहिर किया है। उनका आरोप है कि भारत सरकार असुविधाजनक आंकड़ों को दबा रही है।
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