जौनपुर। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक छोटा सा गांव है माधोपट्टी। 75 घरों की इस बस्ती में कुल 47 आईएएस-आईपीएस अफसर हैं। कुल मिलाकर इसको अफसरों का गांव कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इनमें से ज्यादातर अधिकारी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में कार्यरत हैं। कई अफसर कई-कई राज्यों में चीफ सिकरेट्री रहे, तो कई अलग-अलग देशों में राजदूत भी रहे।  

एक ही घर से चार भाई बने आईएएस :

देश के प्रशासन को सुचारु रुप से चलाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले इस गांव की तरफ किसी का भी ध्यान आज तक नहीं गया ना ही यहां पर बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था है। यहां से शहर की तरफ जाने वाले मुख्य सड़क पर यहां तक कि इस गांव का नाम भी बोर्ड पर अंकित नहीं है। इस गांव के नाम एक और रिकॉर्ड दर्ज है। एक ही परिवार के चार भाइयों ने आईएएस की परीक्षा पास कर नया रिकॉर्ड कायम किया था। 1955 में बड़े भाई विनय ने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की। अन्य दूसरे भाई छत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह ने 1964 में ये परीक्षा पास की इसके बाद इन्हीं के छोटे भाई शशिकांत सिंह ने 1968 में ये परीक्षा पास कर कीर्तिमान स्थापित किया। टाइम्स आॅफ इंडिया के मुताबिक वहां के एक टीचर कार्तिकेय सिंह का कहना है कि इसका अधिकतर श्रेय जौनपुर जिले के तिलक धारी सिंह पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज को जाता है।

1952 में पहले आईएएस इस गांव से:

माधोपट्टी निवासी सजल सिंह ने इस गांव से जुड़े अफसरों के इतिहास के बारे में बताया। उनके मुताबिक सबसे पहले शायर रहे वामिक जौनपुर के पिता मुस्तफा हुसैन साल 1914 में पहले सरकारी अफसर बने थे। उनके बाद 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह आईएएस बने। वे फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत रहे। इंदू प्रकाश के बाद से यहां कअर/ढउर अफसर बनने का सिलसिला शुरू हो गया। सजल ने कहा कि 1955 में आईएएस की परीक्षा में 13वीं रैंक प्राप्त करने वाले विनय कुमार सिंह बिहार के मुख्य सचिव पद तक पहुंचे। 1964 में उनके दो सगे भाई छत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह एक साथ आईएएस अधिकारी बने। छत्रपाल तमिलनाड़ू के प्रमुख सचिव रहे। यूपी के पूर्व नगर विकास सचिव रहे सूर्य प्रकाश सिंह भी हमारे गांव से हैं।

अफसरों का गांव कहने पर लोग होते हैं खुश:

प्रशंसा भला किसे बुरी लगती है। इस गांव को अफसरों वाला गांव कहने पर यहां के लोग गदगद हो जाते है। माधोपट्टी के डॉ. सजल सिंह बताते हैं, ब्रिटिश हुकूमत में मुर्तजा हुसैन के कमिश्नर बनने के बाद गांव के युवाओं को प्रेरणस्रोत मिल गया। उन्होंने गांव में जो शिक्षा की अलख जगाई वो आज पूरे देश में नजर आती है। जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित माधोपुर पट्टी गांव में एक बड़ा सा प्रवेश द्वार गांव के खास होने की पहचान कराता है। करीब 800 की आबादी वाले राजपूतों के इस गांव में अक्सर लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ियां नजर आती हैं।  

इन्होंने बढ़ाया गांव का मान:

बड़े-बड़े पदों पर पहुंचने के बाद भी ये अधिकारी अपना गांव नहीं भूले हैं। युवकों के साथ यहां की बेटिओं और बहुओं ने भी गांव का मान बढ़ाया है। आशा सिंह 1980 में, उषा सिंह 1982 में, कुवंर चंद्रमौल सिंह 1983 में और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983 में, अमिताभ बेटे इन्दू प्रकाश सिंह 1994 आईपीएएस बने तो उनकी पत्नी सरिता सिंह ने 1994 में आईपीएस चुनीं गईं।     Chhattisgarh से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें  Facebook पर Like करें, Twitter पर Follow करें  और Youtube  पर हमें subscribe करें।