रायपुर। राज्य में अफसरशाही के नाम पर किस तरह की भर्राशाही चल रही है। इसका जीता जागता उदाहरण ये है कि सामान्य प्रशासन विभाग के पास आलाअधिकारियों के विदेश दौरे का कोई हिसाब-किताब ही नहीं है।

ये बात हम नहीं खुद विभाग की ओर से जारी दस्तावेज कहते हैं। जो सामान्य प्रशासन विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी केआर मिश्रा ने जारी किया है।

क्या है पूरा मामला:

दरअसल सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदक ने आला अफसरों के विदेश दौरे के परमिशन की छाया प्रति मांगी थी। उसे जब विभाग ने जानकारी उपलब्ध नहीं कराई, तो आवेदक ने प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष आवेदन किया।

आवेदन पत्र में कहा गया था कि कि वर्ष 2016-17 तथा 2018-19 में कितने आइएएस-आइपीएस अधिकारियों को विभाग ने अनुमति प्रदान की, उसकी छाया प्रति प्रदान करें।

विभाग के विद्वान अपीलीय अधिकारी ने कार्यालयीन ज्ञापन संख्या-एफ 1 मार्च 2009 आईआर बातारीख 5 अक्टूबर 2009 की ओर से जारी मार्गनिर्देशिका के भाग-1 की कंडिका-10 और 15 में दिए गए स्पष्टीकरण का हवाला देते हुए कहा कि ये जानकारी सभी विभागों से प्राप्त कर देना आपेक्षित नहीं था। पत्र में ये भी आरोप लगाया गया कि आवेदक अनुपस्थित रहा।

आवेदक का क्या कहना है:

आवेदक से जब टीआरपी की टीम ने बात की तो उसका कहना था कि उसे इसकी सुनवाई की तारीख ही नहीं बताई गई। उल्टे साधारण डाक से एक निर्णय की कापी भेज दी गई।

जब कि नियमत: आवेदक को सुनवाई की तारीख बताई जाती है, उसी के आधार पर वो उपस्थित होता है। जब कि इस मामले में एकतरफा कार्रवाई की गई है। आवेदक ने इसकी शिकायत मुख्य सूचना आयुक्त से की है।

विवादों में रहा है आला अफसरों का विदेश दौरा:

राज्य के आला अफसरों का दौरा हमेशा ही विवादों में रहा है। ऐसे में उसकी जानकारी न देना विभाग की कार्य प्रणाली पर भी सवालिया निशान तो लगाता ही है, उसको भी कठघरे में भी खड़ा करता है।

अब ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि आइएएस-आइपीएस अधिकारियों के विदेश दौरे को लेकर ऐसा क्या था कि उसकी जानकारी दबाई जा रही है? क्या सूचना के अधिकार अधिनियम का गला खुद प्रदेश के आला अधिकारी ही घोंटने पर आमादा हैं? यदि ऐसा है तो फिर क्या

अधिकारियों का ऐसा करना भेदभावपूर्ण नहीं है? ऐसे तमाम सवाल सिर उठाए खड़े हैं सामान्य प्रशासन विभाग के सामने, और विभाग महानदी भवन में आराम से कानून का ककहरा पढ़ रहा है।

 

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