रायपुर। प्रदेश में दो दिनों तक राजधानी के पांच सितारा होटल में चली स्वास्थ्य विभाग की बैठक ने नए बहस को जन्म दिया है। आखिर कबतक जनता के पैसों को दुरूपयोग होगा? आखिर क्यों सरकारें फिजूलखर्ची से बाज नहीं आती। जबकि शहर में कई ऐसे ऑडिटोरियम, भवन या स्थल हैं जहां पर इसतरह की विभागीय बैठक कम खर्च में कराई जा सकती है। इस मामले में दो पहलू सामने आते हैं या तो मंत्री को व्हीआईपी कल्चर पसंद है या फिर विभागीय अफसर शोऑफ करने में बाज नहीं आते। हालांकि इस विषय पर टीआरपी ने सोशल एक्टिविस्ट व नेताओं से चर्चा की। कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व भाजपा सरकार द्वारा की गई फिजूलखर्ची के मुद्दे को जमकर उठाया था। मगर सत्ता में काबिज होते हैं कांग्रेस की सरकार खुद को फिजूलखर्ची से रोक नहीं पा रही है। कुछ लोगों का मानना है कि मंत्री सादगी पसंद होते हैं उन्हें व्हीआईपी कल्चर में आला अधिकारी ही ढालते हैं। जिसके कारण ही जनता के पैसों की बर्बादी होती है।

चिंता का विषय

यह सचमुच कांग्रेस के लिए सोचने योग्य बात है। उनके शासनकाल में कई विभागों में काम कर रहे कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं हो रहा। अबतक किसानों के खाते में भुगतान नहीं किया गया है। ऐसे में चिंता का विषय यही है कि सरकार किस रास्ते पर चल रही है। यह स्वयं माननीय मुख्यमंत्री जी को सोचना चाहिए। इस मामले में संबंधित विभाग में मंत्री जी की पकड़ पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन्हें बैठक के संबंध में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

रामविचार नेताम
राज्यसभा सदस्य

विभाग के अधिकारी व्हीआईपी कल्चर में ढालते

मंत्री जी ने कहा है कि सर्किट हाउस उपलब्ध नहीं है। अगर इसकी पुनरावृत्ति होती है तो कांग्रेस भी भाजपा की राह में बढ़ रही है। फिजूलखर्ची के मामले में मंत्री टीएस सिंहदेव का स्पष्टीकरण आया है। यह उनकी पहली विभागीय बैठक है। ऐसा पहली दफा है और जब उन्होंने मामले में मीडिया के समक्ष स्पष्टीकरण दे दिया है तो एकबार उन्हें मौका देना चाहिए। अधिकारियों को वीआईपी कल्चर पसन्द है और वो जानबूझकर ऐसा करते हैं ताकि मंत्री को साधकर अपने हिसाब से कार्य कर व करवा सके। हालांकि फिजूलखर्ची से मंत्रियों या अधिकारियों को सदैव बचना चाहिए। मंत्री बगैर तामझाम के यदि किसी साधारण से स्थल में बैठक ले तो यह जनता के समक्ष अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

दलेर चावला
सोशल एक्टिविस्ट

अधिकारियों की लें क्लास

सरकार का गेस्ट हाउस है, मंत्रालय है इसी के साथ न्यू सर्किट हाउस हैं जहां इस तरह की बैठकें आयोजित की जा सकती है। इसस फिजूलखर्ची पर रोक लगाई जा सकती है। ऐसा जरूरी नहीं है कि दूर-दराज से अधिकारियों को बैठक में हरबार बुलाया जाए। वीडियो कॉफ्रेंसिंग भी बैठक का अच्छा माध्यम साबित हो सकता है। पब्लिक के पैसों पर दिखावा यह सरासर गलत है। कई दफे मंत्रियों को बैठक के संबंध में कुछ चीजे नहीं पता रहती। हो सकता है उन्हें ओवरलूक किया गया हो। मगर यह आपके विभाग की बैठक थी तो इसकी जानकारी संबंधित मंत्री को नही थी ऐसा नहीं लगता। इस संबंध में अधिकारियों की क्लास लेनी चाहिए।

राकेश चौबे
सोशल एक्टिविस्ट

कथनी और करनी एक होनी चाहिए

कथनी और करनी एक होनी चाहिए। पूर्व सरकार के बाद आई वर्तमान सरकार में भी यदि जनता के पैसों की बचत नहीं की जाती है तो यह पूरी तरह से गलत है। सरकार को जनता के पैसों के दुरूपयोग से बचना चाहिए। घोषणा पत्र में किसानों को बोनस, समर्थन मूल्य, तेंदू पत्ता बोनस आदि को लेकर कई घोषणाएं की गई थीं। जिसे सरकार ने पूरा भी किया है। जिसके कारण वित्तीय भार थोड़ा बढ़ गया है। अगर फिजूलखर्च में ध्यान नहीं दिया गया तो प्रदेश की वित्तीय व्यवस्था डगमगा भी सकती है। अगर हम दिखावे में ही रहेंगे तो प्रदेश की वित्तीय स्थिती माइनस में चली जाएगी। यह सरकार की अदूरदर्शिता की निशानी बनेगी।

ममता शर्मा
सोशल एक्टिविस्ट

नहीं मिला कोई आवेदन

बैठक के संबंध में जब पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारी सुरेश शर्मा से चर्चा की गई तो उन्होंने स्वास्थ्य विभाग द्वारा 9-10 जून के बैठक के संबंध में किसी भी प्रकार का आवेदन प्राप्त होने से इंकार किया है। मगर उन्होंने इस बात की पुष्टी कि है कि दिनांक 11 जून को उनसे स्वास्थ्य विभाग द्वारा 30 लोगों के लिए एक हॉल की मांग की गई है। हालांकि इसी दिन महिला एवं बाल विकास विभाग की भी बैठक है। ऐसे में उन्हें सर्किट हाउस में उपर वाला हॉल दे दिया गया है।