रायपुर। इससे बड़ा मिराकल आपने शायद न देखा होगा और न सुना होगा। जो हम आज आपको बताने जा रहे हैं। जी हां, आज हम आपका तारूफ एक ऐसी प्रयोगशाला से करवाने जा रहे हैं जिस पर कृषि यंत्रों की जांच का जिम्मा है, मगर यहां जांच के नाम पर सिर्फ तमाशा किया जा रहा है।

कृषि अभियांत्रिकी विभाग की कृषि प्रमाणीकरण जांच प्रयोगशाला तेलीबांधा में गिनीचुनी मशीनों के दम पर कृषि यंत्रों की पूरी जांच का प्रमाण पत्र बनाकर दिया जा रहा है। यह कार्य अपर संचालक कृषि ज्ञानेश कुमार पीड़िहा द्वारा किया जा रहा है। इनके ऊपर जहां-जहां ये पहले रहे वहां-वहां दर्जनों शिकायतें लंबित पड़ी हुई हैं।

साल भर से बंद पड़ी है प्रयोगशाला, दनादन बांटे जा रहे प्रमाण पत्र:

इस प्रयोगशाला की अगली खासियत ये है कि यहां मशीनें पिछले एक साल से बंद हैं, मगर कृषि यंत्रों की टेस्टिंग के प्रमाण पत्र दनादन बांटे जा रहे हैं। जानकारों ने तो यहां तक बताया कि मशीनों पर धूल जमीं हुई है।

उनको देखकर ऐसा लगता है कि वर्षों से इनका इस्तेमाल ही नहीं किया गया। ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि आखिर इतने सारे प्रमाण पत्र कैसे जारी कर दिए गए?

सरकारी नियम कायदे ताक पर:

विभाग ने सरकार के बनाए सारे नियम-कायदे ताक पर रख दिए हैं। जहां एक कृषि यंत्र की जांच में कई महीनों तक का समय लगता है। तमाम पार्ट्स की रीडिंग लेनी पड़ती है। तमाम सारे आॅब्जवेशन करने पड़ते हैं। वहीं इस प्रयोगशाला में प्रमाण पत्र हाथोंहाथ दे दिए जाते हैं।

दूसरी प्रयोगशालाओं तक नहीं पहुंचते सैंपल:

जानकारों ने ये भी बताया कि जिन मैटेरियल्स की टेस्टिंग बाहर की लैब से कराई जाती है। उन तक मैटेरियल्स के सैंपल तक नहीं पहुंचते। ऐसे में इनका जांच सर्टिफिकेट कितना विश्वसनीय होगा, इसकी भी जांच होनी चाहिए।

आधी-मशीनें और जांच पूरी:

प्रयोगशाला के एक अन्य जानकार ने कहा कि इस प्रयोगशाला में महज गिनती की मशीनें हैं। जैसे हार्डनेस टेस्टिंग मशीन,इलेक्ट्रिक ओवन और यूनिवर्सल टेस्टिंग मशीन है। इनकी हालत देखकर ऐसा नहीं लगता कि इनसे काम लिया जाता होगा।

सभी पर धूल की मोटी परत जमीं हुई है। उधर जांच रिपोर्ट पूरी दी जा रही है। ऐसे में प्रमाण पत्र की प्रमाणिकता पर भी सवाल खड़े होते हैं।

किसान हो रहे परेशान:

सब्सिडी पर उपकरण लेने वाले किसानों की हालत ये है कि उनके उपकरण जल्दी-जल्दी खराब हो रहे हैं। उनको बार-बार मरम्मत करवानी पड़ रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर ऐसे गुणवत्ता प्रमाण पत्र से क्या फायदा? इसकी पूरी जांच अगर सरकार कराए तो बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आ सकता है।

अपर संचालक ने नहीं उठाया फोन:

इस मामले में अपर संचालक ज्ञानेश कुमार पीडिहा का पक्ष लेने की लगातार कोशिशें की गर्इं, मगर उनका फोन स्विच आॅफ बताता रहा।

क्या कहते हैं जिम्मेदार:

मु­ो इस मामले की जानकारी नहीं है। मैं तत्काल पता करवाता हूं कि क्या मामला है। इसके बाद इसकी जांच करवाई जाएगी। इसमें जो भी दोषी होंगे उनके ऊपर कार्रवाई की जाएगी।
भीम सिंह मंडावी
संचालक
कृषि विभाग रायपुर, छत्तीसगढ़।

 

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