जगदलपुर। देशभर में अपने राज्यों से विस्थापित हुए आदिवासी परिवारों के भविष्य को लेकर दो जुलाई को एक बैठक होगी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस संबंध में छत्तीसगढ़ सहित अन्य ऐसे प्रदेश जहां से बड़ी संख्या में आदिवासी विस्थापित किए गए हैं, उन राज्यों के सरकार के प्रतिनिधि भी इस बैठक में शामिल होंगे। बैठक में ऐसे विस्थापित परिवारों के भविष्य को लेकर चर्चा होगी।

दरअसल एक नई शांति प्रक्रिया संगठन के लिए शुभ्रांशु चौधरी ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम के दौरान हिंसा की घटनाओं से परेशान कई आदिवासी परिवारों के सीमावर्ती राज्यों में विस्थापित होने का जिक्र है। इसके साथ ही पत्र में लिखा है कि ऐसे आदिवासी परिवारों को दूसरे राज्यों में पटटा नहीं मिलता और न ही वन अधिकार कानून के तहत उनको कोई लाभ मिल रहा है। ऐसे परिवार अब वापस आना चाहते हैं, उन्हें संभव मदद की जानी चाहिए।
सरकार से सवाल, कितने हुए विस्थापित:
शुभ्रांशु चौधरी के पत्र का हवाला देते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिखा, इसमें उन्होंने सरकार से पूछा है कि प्रदेश में कितने आदिवासी विस्थापित हुए हैं? विस्थापित आदिवासियों के संबंध में जानकारी मांगी गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बस्तर संभाग से ही करीब 5 हजार आदिवासी परिवार सलवा जुडूम के दौरान विस्थापित हुए थे।

सुकमा में मना चुके हैं पेन पंडुम:
इससे पहले ही आदिवासी सुकमा में अपने कुलदेवताओं की पूजा की। इसमें पड़ोसी राज्यों में गए यहां के आदिवासी शामिल हुए। इसको पेन पंडुम कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम के दौरान नक्सल हिंसा से परेशान होकर कई आदिवासी परिवार अपनी जमीन छोड़कर पड़ोसी राज्यों में चले गए थे। ये आदिवासी परिवार अब फिर से अपनी जमीन पर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए प्रशासनिक कवायद तो की ही जा रही है। साथ ही परंपरा व संस्कृति के मुताबिक ये परिवार अपने कुलदेवताओं की पूजा भी जमीन पर वापसी से पहले करने की।
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