नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) को पीएफ पर ब्याज दरें 8.65 फीसदी से कम करने की मांग की है। अगर ऐसा होता है तो इसका सीधा असर ईपीएफओ के 8 करोड़ से अधिक अंशधारकों पर पड़ेगा। नौकरीपेशा लोगों के लिए पीएफ भविष्य की सुरक्षा का बड़ा माध्यम है और ब्याज दर कम होने से उन पर सीधा असर पड़ेगा।

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक वित्त मंत्रालय को इस बात की चिंता है कि पीएफ पर अधिक रिटर्न देने पर बैंकों के लिए आकर्षक ब्याज दरें देना संभव नहीं होगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। मार्च में ईपीएफओ ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिये कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर 8.65 प्रतिशत ब्याज दर को मंजूरी दी थी।
वित्त मंत्रालय ने जताई थी सहमति
वित्त मंत्रालय ने भी 2018-19 के लिये ईपीएफ पर 8.65 प्रतिशत की दर से ब्याज देने के ईपीएफओ के फैसले पर सहमति जताई थी। इससे पिछले वित्त वर्ष में ईपीएफओ ने अपने अंशधारकों को 8.55 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया था। इससे पहले 2017-18 में ईपीएफ पर ब्याज दर 8.55 प्रतिशत थी। ईपीएफओ ने 2016-17 में ईपीएफ पर ब्याज दर 2015-16 के 8.80 प्रतिशत से घटाकर 8.65 प्रतिशत कर दी थी। हालांकि, अब सरकार को फंड के खराब प्रदर्शन को देखते हुए यह ब्याज दर सही नहीं लग रही है। ईपीएफओ अपने फंड का 85 फीसदी से भी ज्यादा हिस्साह केंद्र और राज्यों की सिक्योरिटीज और ऊंची रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड्स में निवेश करता है। करीब 190 अरब डॉलर की एसेट संभालने वाले ईपीएफओ ने तकरीबन 8.31 करोड़ डॉलर (5.75 अरब रुपये) मुश्किलों से जूझ रही आईएलएंडएफएस के बॉन्ड्स में निवेश किए थे।
वर्तमान में महंगाई दर 3 फीसदी के करीब है और बैंकों में बचत खाता में जो ब्याज मिलता है वो 4 से लेकर 6 फीसदी के बीच है। ऐसे में बैंक डिपोजिट पर असर पड़ सकता है। इस बारे में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अप्रूवल के बाद श्रम मंत्रालय को सौंपे गए मेमोरेंडम में लिखा, आईएलएंडएफएस में निवेश के कारण फंड को नुकसान हुआ होगा। ऐसे में श्रम मंत्रालय को वित्त वर्ष 2018-19 के लिए ब्याज दर पर फिर से विचार करने की सलाह दी जाती है।