रायपुर।
छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी को उसका पहला आदिवासी अध्यक्ष मिला। सीएम भूपेश बघेल का भार कुछ हल्का हुआ। तो वहीं बतौर मुख्यमंत्री उनके सामने तमाम चुनौतियां सिर उठाए खड़ी हैं। इसमें पार्टी के दिग्गज नेता सत्यनारायण शर्मा, धनेन्द्र साहू, अमितेष शुक्ल और अरूण वोरा जैसे नेताओं को जिम्मेदारी देना, निगम-मंडलों की नियुक्तियां, नगरीय निकाय चुनावों की जिम्मेदारियां और आंदोलनों पर अंकुश लगाना आदि शामिल हैं। ऐसे में देखना ये होगा कि सीएम इन समस्याओं का क्या समाधान निकालते हैं?
मरकाम को मिली मजबूत कांग्रेस की कमान:
मोहन मरकाम जिस कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं वो विधानसभा में बहुमत वाली पार्टी है। प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 68 सीटें उसी के पास हैं। तो वहीं भूपेश बघेल को जिस प्रदेश कांग्रेस पार्टी की कमान सौंपी गई थी वो प्रदेश में न सिर्फ चुनाव हार चुकी थी, बल्कि भितरघात से भी त्रस्त थी। अपनी मेहनत और सियासी कौशल का इस्तेमाल कर भूपेश बघेल ने बडी कुशलता से अजीत जोगी के पूरे ग्रुप को किनारे लगाया। इसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नई जान आई। लोग संघर्ष करने के लिए भूपेश बघेल के साथ आ गए।
सियासी समीकरण साधने में सिध्दहस्त :
प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पार्टी में बैलेंस बनाकर चलना जानते हैं। मोहन मरकाम को जब प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। तो उन्होंने सरगुजा के विधायक अमरजीत भगत को मंत्री पद दे दिया। इससे बस्तर और सरगुजा का बैलेंस बना रहेगा। इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के आ जाने से उनका कुछ भार भी हल्का होगा।
कौन-कौन सी चुनौतियां अब सामने:
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने अब भी कई चुनौतियां खड़ी हैं। ऐसे में अगर उनका निराकरण नहीं किया गया तो पार्टी के अंदर विरोध के स्वर उठने शुरू हो जाएंगे। दरअसल राज्य के दिग्गज नेता सत्यनारायण शर्मा, धनेन्द्र साहू, अमितेष शुक्ल और अरूण वोरा के राजनीतिक भविष्य को लेकर संशय की स्थिति बन गई है। इनको सरकार और संगठन में जिम्मेदारी दिलाना मुख्यमंत्री के सामने बड़ी चुनौती है।
देखना ये होगा कि कांग्रेस इन नेताओं के अनुभवों का क्या इस्तेमाल करेगी ?
निगम -मंंडलों की नियुक्तियां बनीं फांस:
प्रदेश के निगम और मंडलों के सौ पद हैं तो वहीं डेढ़ हजार दावेदार भी उम्मीदें लगाए बैठे हैं। ऐसे में भूपेश बघेल के सामने ये दूसरी बड़ी चुनौती होगी कि इनको कैसे संतुष्ट किया जाए?
नगरीय निकाय चुनावों की जिम्मेदारियां:
नगरीय निकाय चुनावों में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। ऐसे में उसकी भी रणनीति तैयार करनी होगी। हालांकि इसकी जिम्मेदारी प्रदेश अध्यक्ष की होती है मगर मुख्यमंत्री की भी बराबर की भूमिका रहती है।
आंदोलनों पर अंकुश लगाना जरूरी:
भाजपा के शासन काल में कर्मचारियों के आंदोलनों को अनदेखा किया गया। ढाई महीने तक सप्रेशाला मैदान में आंदोलन करने के बाद शिक्षाकर्मी निराश होकर चले गए। सफाई कर्मचारी, मितानिन, कोटवार समेत राज्य सरकार के कर्मचारियों ने भी हड़ताल की। उधर नया रायपुर में सरकार आराम फरमाती रही। इन सभी लोगों की नाराजगी ही सरकार को ले डूबी। ऐसे में भूपेश बघेल के सामने ये भी एक बड़ी चुनौती होगी, कि कैसे इन सारी समस्याओं से एक साथ लड़ा जाए।

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