उचित शर्मा

सरकार (Government) किसानों की उपज दोगुनी करने का दावा (Claim to double the yield) कर रही है। केंद्र और राज्य सरकारें (Central and State Government ) लगातार इसी दिशा में काम करने में लगी हैं। प्रदेश सरकार (state government) तो कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था (Agricultural based finance) को पूरी तौर पर लागू करने में लगी हुई है। नरवा, गरुआ, घुरवा, बाड़ी (Narva, Garua, Ghurva, Baadi) को छत्तीसगढ़ की कृषि का आधार(base of farming) बनाया जा रहा है।

 

ऐसे में लोगों को ये जानकार जोरदार झटका लगेगा कि कृषि उत्पादों के निर्यात में हम लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2019-2020 (Financial Year 2019-2020) के शुरुआती महीनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि देश के कृषि उत्पादों के निर्यात में 7.93 फीसदी की कमी आई है। यह घटकर 20,345 करोड़ रह गया है। जब कि पिछले साल यही आंकड़ा 22,050 करोड़ का था। देश से बासमती चावलों का निर्यात 52.94 प्रतिशत, सब्जियां 14.81 प्रतिशत तो ताजे फलों के निर्यात में 3.1 फीसदी की कमीं आई है।

 

छत्तीसगढ़ में कृषि उत्पादों ( Agricultural Products in Chhattisgarh ) पर कमीशनखोरी चरम पर है। पत्थलगांव के टमाटरों का इस राज्य में क्या हश्र होता है हर किसी को पता है। जो किसान टमाटर की खेती करते हैं उनको क्या मिलता है यह भी बताने की जरूरत नहीं है। बस इतना जान लीजिए कि वहां सीजन में टमाटरों को नेशनल हाइवे पर फेंक दिया जाता है। पिछली सरकार ने वहां कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसेसिंग प्लांट लगाने का दावा तो किया था मगर वह जमीन पर नहीं उतर सका। साल-दर साल किसान अपने उच्च गुणवत्ता वाले टमाटरों को सड़कों पर फेंकने पर मजबूर हैं।

 

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां राज्य सरकार ने ढाई हजार रुपए क्विंटल की दर पर धान खरीदनेका दावा किसानों से किया है। 15 वें वित्त आयोग की टीम ने भी राज्य शासन के सामने दबी जुबान से इस बात का संकेत भी दे दिया कि इतनी कीमत चुकाकर धान का अंबार लगाकर राज्य सरकार क्या करेगी? उधर खेती की हालत ये है कि किसानों को जो बीज दिए गए हैं उनमें से ज्यादातर गुणवत्ता परीक्षण में फेल साबित हुए हैं। ऐसे में धान की फसल कैसी होगी इसको आसानी से समझा जा सकता है। सूखे की मार, खराब बीज किसानों को जोर का झटका देंगे। इधर देर से हुई बारिश से भी धान का उत्पादन प्रभावित होगा।

 

राज्य सरकार की नरवा, गरुआ, घुरवा, बाड़ी की परिकल्पना इस दिशा में वरदान तो साबित होगी, मगर इसके लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत है। यही कारण है कि कार्यकर्ताओं को इसकी मॉनिटरिंग का जिम्मा दिया गया। उन्होंने भी सरकार को अपनी रिपोर्ट तो दे दी, मगर सरकार का ये जवाब लोगों की चिंता को बढ़ाता है कि उनको अपना बनाओ। उनसे बातचीत करो? जब कि कार्यकर्ताओं की उम्मीद ये थी कि उनसे काम नहीं करने वाले अधिकारियों के नाम की लिस्ट मांगी जाएगी। उसकी जांच कर सीधे-सीधे उनके ऊपर वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। अभी भी समय हाथ में है, अगर सरकार असल में नरवा, गरुआ, घुरवा बाड़ी की योजना को पूरी तौर पर लागू करना चाहती है तो उसे कठोर निर्णय लेने होंगे। इसमें ढिलाई बरतने पर नुकसान सरकार का ही होगा।

 

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