जांजगीर-चांपा। जांजगीर के बीआरसी ऋषिकान्ता राठौर के आंगन में इन दिनों ब्रम्हकमल (Brahmakamal) खिला हुआ है। यही कारण है कि शाम ढलते ही लोगों का उनके घर आना-जाना शुरू हो जाता है। दर्शन करने आने वाले लोगों का कहना है कि ब्रम्हकमल (Brahmakamal) के दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है। हम इसका दावा कतई नहीं करते कि ऐसा होता होगा।
सूर्यास्त के बाद खिलाता है ब्रम्ह कमल:
ब्रम्हकमल (Brahmakamal), सूर्यास्त के बाद खिलता है और रात 12 बजते ही, खिले हुए ब्रम्हकमल (Brahmakamal) की फंखुड़ियाँ बन्द हो जाती हैं। बरसों इंतजार के बाद ही ब्रम्हकमल (Brahmakamal) खिलता है। वैसे, ब्रम्हकमल (Brahmakamal) हिमायल क्षेत्र में ही मिलता है और इसलिए ब्रम्हकमल (Brahmakamal) को हिमालयी फूलों का राजा कहा जाता है। इस बार कुछ नया नहीं है इससे पहले भी इस परिवार के आंगन में ब्रम्हकमल (Brahmakamal) खिलता रहा है।
आइए आपको बताते हैं कब-कब खिला ब्रम्ह कमल:
ऋषिकान्ता राठौर के आंगन में 1998 से ब्रम्हकमल है, लेकिन ब्रम्हकमल सबसे पहले 2015 में खिला, फिर 2018 में और इस साल 2019 में खिला है। शास्त्रों व पुराणों में भी इसकी महिमा का बखान मिलता है।

58 तरह का ब्रह्मकमल:

हालांकि इसका नाम ब्रह्मकमल (Brahmakamal) है पर यह तालों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन में होता है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प (State flower of Uttarakhand) है।   इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं।

ब्रह्मककल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा (Socceria Obovelata) है। यह एसटेरेसी वंश (Astaresi Dynasty) का पौंधा है। इसका नाम स्वीडन के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है।

ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है।

ब्रह्मकमल के औषधीय गुण:

इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है।

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