रायपुर। छत्तीसगढ़ के नवाचारी मशरूम उत्पादक किसान राजेन्द्र कुमार साहू (Farmer Rajendra Kumar Sahu) को मशरूम उत्पादन में नवाचार तथा उपलब्ध संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए राष्ट्रीय सम्मान (National honor) प्राप्त हुआ है। महासमुंद जिले के बसना विकासखण्ड के ग्राम पटियापाली के किसान राजेन्द्र कुमार साहू (Farmer Rajendra Kumar Sahu) को मशरूम अनुसंधान निदेशालय, सोलन (हिमाचल प्रदेश) द्वारा प्रगतिशील मशरूम उत्पादक सम्मान से नवाजा गया है।
12 वर्षों से कर रहे हैं मशरूम का उत्पादन
राजेंद्र साहू को यह सम्मान उनके खेतों में आम के वृक्षों के नीचे खुले में पैरा मशरूम उत्पादन की नई तकनीक विकसित करने के लिए प्रदान किया गया है। किसान राजेंद्र इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) की मशरूम अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में विगत 12 वर्षों से मशरूम का उत्पादन एवं विपणन कर रहे हैं। वे अपने खेतों में प्रति दिन 3 से 5 किलो पैरा मशरूम की फसल ले रहे हैं जो उनके खेत से ही 200 से 300 रूपये प्रति किलो की दर पर बिक जा रहीं है।
खुले में पैरा मशरूम उत्पादन तकनीक को मिली सराहना
उल्लेखनीय है कि मशरूम अनुसंधान निदेशालय सोलन द्वारा 10 सितम्बर को मशरूम मेले का आयोजन किया गया था जहां छत्तीसगढ़ के मशरूम उत्पादक किसान राजेन्द्र साहू (Farmer Rajendra Kumar Sahu) को नवीन एवं प्रगतिशील मशरूम उत्पादक के रूप में सम्मानित किया गया।
निदेशालय के वैज्ञानिकों द्वारा पिछले वर्ष इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के मशरूम वैज्ञानिकों के साथ राजेंद्र के प्रक्षेत्र का भ्रमण किया गया था और उनके द्वारा विकसित खुले में पैरा मशरूम उत्पादन तकनीक की सराहना की गयी थी।
आम के पेड़ों की छांव, लोहे की पाईपों पर धान के गट्ठों में पैरा मशरूम का उत्पादन
इस तकनीक में उनके द्वारा आम के पेड़ों की छांव में लोहे की पाईपों पर धान के गट्ठों में पैरा मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है। गौरतलब है कि किसान राजेंद्र मशरूम उगाने के लिए मशरूम स्पाॅन (बीज) का उत्पादन भी स्वयं ही करते हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (Indira Gandhi Agricultural University) के कुलपति डाॅ. एस.के. पाटिल के निर्देश पर मशरूम अनुसंधान प्रयोगशाला द्वारा उन्हें मशरूम स्पाॅन तैयार करने हेतु आवश्यक प्रशिक्षण तथा उपकरण प्रदान किये गये हैं। राजेंद्र मशरूम उत्पादन के उपरान्त अवशिष्ट पदार्थ से केंचुआ खाद का निर्माण एवं विक्रय भी करते हैं। इसके साथ ही वे आस-पास के कृषकों को केंचुओं का विक्रय कर अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त कर रहे हैं।