बिलासपुर। आदिवासी बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने वाले समाजसेवी (Philanthropist) और शिक्षाविद डाॅ. प्रभुदत्त खेड़ा (Dr. Prabhudatt Kheda) का सोमवार सुबह निधन हो गया। वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। बिलासपुर के अपोलो अस्पताल (Apollo Hospital) में उनका इलाज (Treatment) चल रहा था, जहां आज सुबह उनका निधन हो गया।

जानकारी के मुताबिक, उनका अंतिम संस्कार 24 सितंबर को मुंगेली जिले के लमनी गांव में किया जाएगा। बता दें, डॉ. खेड़ा का जन्म 13 अप्रैल, 1928 को हुआ था। वे पिछले लगभग 35 सालों से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र अचानकमार के जंगलों के बीच लमनी गांव में आदिवासी बच्चों को शिक्षित कर रहे थे।

जानकारी के मुताबिक, डाॅ. प्रभुदत्त खेड़ा दिल्ली विश्वविद्यालय में 15 सालों तक समाजशास्त्र (Sociology) पढ़ाते रहे हैं। बताते हैं कि उनका 1983-84 के बीच बिलासपुर (Bilaspur) आना हुआ था। इस दौरान वे मुंगेली के अचानकमार के जंगल घूमने ग। वहां पर उन्होंने देखा कि इलाके के आदिवासी बच्चे शिक्षा से दूर हैं। ये देखकर उन्होंने फैसला लिया कि वे छत्तीसगढ़ में ही रहेंगे। फिर डीयू की नौकरी छोड़कर वे मुंगेली चल आए और फिर वापस नहीं गए। लमनी के जंगलों में ही डॉ. खेड़ा बस गए।

सीएम भूपेश बघेल ने जताया दुख

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डाॅ. प्रभुदत्त खेड़ा के निधन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) ने शोक व्यक्त किया है।


उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि अचानकमार के घने जंगलों के बीच कुटिया बनाकर बैगा आदिवासियों के बीच शिक्षा का उजियारा फैलाने वाले, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. प्रभुदत्त खेड़ा के निधन की खबर सुनकर मन दुःखी है। विनम्र श्रद्धांजलि।

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