• कौड़ी के मोल ली जमीन और बेच रहे करोड़ों में 

  • सब्सिडी की जमीन को करोड़ों में बेचने का चल रहा खेल 

  • नियमों की उड़ा रहे धज्जियां

रायपुर। निगम, मंडलों पर आने वाले खर्च के कारण आज उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है, दूसरी तरफ औने-पौने दामों में हाउसिंग बोर्ड (Housing board) ने जिन्हें जमीन बेचा वे लाखों की जमीन का आज करोड़ों में सौदा कर मालामाल हो रहे हैं।

दअसल, छत्तीसगढ़ में जमीनों (lands) की बंदरबांट का खेल सालों से चल रहा है। खेल ऐसा कि पहले लाभ के लिए नियम बनाओ फिर खुद ही अपने लिए जमीन आवंटित कर लो। न रोकने वाला कोई न टोकने वाला कोई। जमीन (land) के इस गोरखधंधे में माननीय के साथ ही ब्यूरोक्रेट भी शामिल है। हद तो यह है कि किसी को सब्सिडी की जमीन कितनी बार दी जा सकती है। इसको लेकर कोई नियम (Rule) ही नहीं है। रायपुर के बाद अब इनको नया रायपुर में सब्सिडी में जमीन और मकान देने की तैयारी है।

4 लाख की जमीन 68 लाख में बेच रहे

दस साल पहले हाउसिंग बोर्ड (Housing board) ने प्रदेश के माननीयों और अधिकारियों को रहने के लिए सब्सिडी वाला मकान और जमीन देने का फैसला किया। जमीन भी ऐसे जगह में दी गई जो उस समय भी राजधानी का सबसे महंगा इलाका था और आज भी यहां मकान करोडों के है, लेकिन जब ये जमीन इनको दी गई तो कीमत लगभग 4 लाख रुपये तय की गई थी, जिसे वे आज 68 करोड़ में बेच रहे हैं। बता दें कि मौलश्री विहार और धरमपुरा (Maulashree Vihar and Dharampura) में सरकार ने हाउसिंग बोर्ड (Housing board) के जरिये कम कीमत में इनको जमीनें दी थी। उस समय सड्डू जैसे इलाके में 900 वर्गफुट के एलआईजी के लिए भी हाउसिंग बोर्ड लगभग इतनी ही कीमत में बेच रहा था।

हाउसिंग बोर्ड का खजाना खाली, डिफाल्टर होने के कगार पर

इस बीच जो चौंकाने वाली बात सामने आ रही है वह यह कि इन रसूखदारों ने अपने पद और पावर का दुरूपयोग कर सरकार के हाउसिंग बोर्ड (Housing board) से मिलने वाली जमीन का सौदा करना शुरू कर दिया है। रसूखदार माननीय और अधिकारी इन जमीन में आवास बनाने और मकानों में रहने की बजाय इन्हें लाखों-करोड़ों में बेचकर मालामाल हो रहे हैं। इधर ये रसूखदार जमीन-मकान बेचकर करोड़पति बन रहे हैं, वहीं हाउसिंग बोर्ड (Housing board) डिफाल्टर होने की कगार पर है।

जमीन को 68 लाख में बेचने का विज्ञापन

राजधानी के धरमपुरा आईएएस कॉलोनी (Dharampura IAS Colony) में जमीन की बिक्री को लेकर बाकायदा प्रॉपर्टी डीलर की साइट पर विज्ञापन जारी कर 4435 वर्गफीट की जमीन को 68 लाख में बेचने का मसौदा तैयार किया गया है।

जमीन को 68 लाख में बेचने का विज्ञापन
जमीन को 68 लाख में बेचने का विज्ञापन

द रूरल प्रेस (The rural press) की टीम को प्रॉपर्टी डीलर की साइट से मिली विज्ञापन की जानकारी ने इस बात को और मजबूती से प्रमाणित कर दिया कि वाकई में अधिकारियों को मिलने वाली सब्सिडी की जमीन में खरीद-फरोख्त का व्यापार फल-फूल रहा है।

1500-1600 प्रति वर्गफ़ीट में बेच रहे जमीन

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार हाउसिंग बोर्ड (Housing board) की सब्सिडी वाली जमीन को प्रदेश के माननीय और अधिकारी 1500 से 1600 रुपए वर्गफीट में बेच रहे हैं।

कैसे होता है गोरखधंधा

आईएएस अधिकारी को सब्सिडी वाली जमीन बहुत कम कीमत पर 10 साल की लीज पर दी जाती है। इसके साथ ही उस जमीन को 10 सालों में विकसित कराया जाता है। वहीँ चौड़ी सड़के, आधुनिक सुविधाएं सरकारी खर्च पर उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा लीज खत्म होने पर जमीन को भूभाटक देकर फ्री होल्ड करा लिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद आईएएस अधिकारी बाजार भाव से ज्यादा कीमत पर जमीन को बेच देते है।

नियम विरुद्ध है आवंटन

सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को राजधानी में मकान आवंटन को लेकर गृह निर्माण विभाग के स्पष्ट नियम है। इसके अनुसार यदि किसी अफसर या कर्मचारी के पास राजधानी में अपना आवास है तो उनको सरकारी मकान अलॉट नहीं किया जा सकता। दूसरी तरफ यदि उंन्होने सब्सिडी वाली जमीन ली है तो तीन से चार साल के अंदर घर बनवाकर वहां शिफ्ट होना होगा। गिने चुने अफसरों को छोड़कर कोई इस नियम का पालन नहीं कर रहा है।

कम कीमत पर जमीन देना न्याय संगत नहीं

एक लीगल व्यू के मुताबिक कलेक्टर (Collector) से निम्न आय वर्ग के अधिकारियों को 1 या 2 रुपए प्रति वर्ग फ़ीट में जमीन मुहैय्या कराये जाने का प्रावधान है, लेकिन अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियो को इतनी कम कीमतों पर जमीन की सुविधा देने का प्रावधान समझ से परे है।

रजिस्ट्री नहीं, तो बिक्री की हिस्ट्री भी नहीं

नियम के अनुसार हाउसिंग बोर्ड (Housing board) की लीज में दी गयी जमीन में रजिस्ट्री का कोई प्रावधान नहीं है। अब सोचिये जब रजिस्ट्री नहीं तो भला हिसाब-किताब का कैसे पता चलेगा। यही वजह है कि ऐसे नियमों का फायदा उठाकर ये रसूखदार बिचौलियों की मदद से महंगे दामों पर जमीन और मकान को बेच रहे हैं। इन्हें मालूम है कि जब रजिस्ट्री नहीं तो खाते में एंट्री नहीं होगी।

मौलश्री विहार, धरमपुरा और छेरीखेड़ी में चल रहा जमीन का खेल

विश्वसीय सूत्रों की मानें तो राजधानी के मौलश्री विहार, धरमपुरा और छेरीखेड़ी जैसे इलाकों में हाउसिंग बोर्ड (Housing board) की सब्सिडी वाली जमीन और मकान में खरीदी-बिक्री का खेल चल रहा है। इसकी अगर जांच कराई जाये तो निश्चित तौर पर गोरखधंधे का पर्दाफाश हो सकता है।

कुछ सुलगते सवाल

1. क्या माननीयों और अधिकारियो को मोटी तनख्वाह देने के बाद गरीबों के हक की जमीन देना सही है?
2. हाउसिंग बोर्ड की सब्सिडी वाली जमीन और मकान के खरीद-फरोख्त का गोरखधंधा बंद होगा?
3. क्या शासन-प्रशासन मामले को संज्ञान में लेकर कोई उचित कार्यवाही करेगा?
4. हाउसिंग बोर्ड को फायदा पहुंचाने पॉलिसी में पारदर्शिता लाने कोई ठोस कदम उठाये जायेंगे?

(नोट: द रूरल प्रेस की इन्डेप्थ स्टोरी शासन-प्रशासन में खुलेआम चल रही चर्चा के आधार पर जनहित में प्रकाशित की गयी है।)

 

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