• यही हाल रहा तो दुनिया के आधे मनोरोगी भारत और चीन में होंगे!

नई दिल्ली। देश की अधिकांश जनता जाने अनजाने किसी न किसी तरह के मानसिक विकार (Mental Disorder) की शिकार है। भारत की जनसंख्या का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा सामान्य नहीं है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि हाल ही में डिप्रेशन (Depression) पर जारी की एक रिपोर्ट में कहा गया है। World Mental Health Day पर इस खास रिपोर्ट पर गौर करें तो आने वाले सालों में दुनिया के आधे मनोरोगी भारत और चीन में होंगे?

यह भी जान लें कि इस तरफ न तो समाज का कोई ध्यान है, और न सरकार का, और बाजार भी इसको लेकर उदासीन है। सरकार मानसिक व्याधियों पर स्वास्थ्य बजट का बस 0.006 प्रतिशत खर्चती है। बीमा कंपनियां मानसिक रोगों (Mental Illnesses) को स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर नहीं करतीं।

नैशविले के वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (Vanderbilt University Medical Center, Nashville) में मशीन लर्निंग एल्गोरिदम (Machine learning algorithms) के जरिये अस्पताल ने 5,000 से अधिक मानसिक मरीजों (Mental patients) के आंकड़ों का विश्लेषण किया कि इसमें कितने अगले हफ्ते तक आत्महत्या का प्रयास करेंगे, जिसके 84 प्रतिशत नतीजे सफल रहे। दो वर्ष के भीतर कितनी आत्महत्या (Suicide) की कोशिश करेंगे, इसका अंदाजा भी 80 फीसद सटीक था।

भारत में एक लाख की आबादी पर मात्र 3 मनोचिकित्सक

भारत (India) में एक लाख की आबादी पर 0.3 मनोचिकित्सक, मात्र 0.07 मनोवैज्ञानिक और महज 0.07 सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विकसित देशों में एक लाख की आबादी पर तकरीबन 0.04 अस्पताल और सात मनोचिकित्सक हैं। वैश्विक स्तर पर करीब 45 करोड़ लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं।
आपको बता दें कि​ विश्व के 40 प्रतिशत से ज्यादा देशों में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित नीति नहीं है और 30 प्रतिशत से अधिक देशों का इससे संबंधित कोई कार्यक्रम नहीं है। करीब 25 प्रतिशत देशों में मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) से संबंधित कोई कानून नहीं है। विश्व के करीब 33 प्रतिशत देश अपने स्वास्थ्य व्यय का एक प्रतिशत से भी कम मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।

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