रायपुर। कांग्रेस ने सुपेबेड़ा (Supebeda) को राजकीय आपदा घोषित कर तत्काल एक वृहद पेयजल योजना

की घोषणा करने की मांग की है। अकेले सूपेबेड़ा में ही किडनी की बीमारी से 100 से अधिक लोगों की मौत
हो चुकी है। प्रदेश कांग्रेस ने इसके लिए डॉ रमन सिंह (Dr Raman Singh) और उनकी सरकार को जिम्मेदार
ठहराया है। आपको बता दें कि सुपेबेड़ा के हर घर में एक न एक नए किडनी रोग के मरीज मिल रहे हैं।
कांग्रेस ने किया सुपेबेड़ा का दौरा :
सहीं उपचार न मिल पाने के कारण मरीज एक-एक कर काल के गाल में समा रहे हैं। इतना ही नहीं अब गांव
के लोग ओडिशा में शामिल होना चाहते हैं। यह पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के कथित विकास के मुंह पर करारा
तमाचा है। प्रदेश कांग्रेस ने सीएम भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) के साथ कांग्रेस (Congress) की एक
टीम ने सुपेबेड़ा का दौरा किया था। उन्होंने ग्रामीणों का दुख दर्द सुना और उनकी परेशानियों से रूबरू हुए।
सुपेबेड़ा का हाल :
- गरियाबंद ब्लॉक के सुपेबेड़ा गांव में दूषित पानी से लोगों के दांत पीले पड़ रहे हैं और आख़रिकार किडनी
फेल (Kidney Failure) होने से लोगों की मौतें हो रही हैं।
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 1500 की आबादी वाले गांव में 64 लोगों की मौत हो चुकी है। मगर
गांव वालों के अनुसार बुज़ुर्गों से लेकर 10 वर्ष के बच्चों तक कुल 170 लोगों की मौत अब तक हो चुकी है।
- लगभग हर घर में एक न एक विधवा है और पिछले पांच वर्षों से वहां लड़कों की शादी रुकी हुई है क्योंकि
वहां कोई लड़की ही नहीं देना चाहता।
- गांव वालों का कहना है कि गांव में कम से कम दो सौ किडनी रोग के मरीज हैं।
- ये वे लोग हैं जिनकी जांच हो चुकी है, गांव वालों का मानना है कि जिनकी जांच नहीं हुई है, उनमें भी किसी
न किसी दिन लक्षण उभर आएगा।
- गांव के लोग बताते हैं कि सुपेबेड़ा के अलावा निदितगुड़ा, सेंदमुड़ा, परेवापाली, मोटरापारा, सागौनबाड़ी,
खम्हारगुड़ा, खोक्सरा, बिरलीगुड़ा और झिरिपानी जैसे एक दर्जन गावों में भी किडनी की समस्याएं सामने आई हैं।
पीने का साफ पानी है भीषण समस्या :
सुपेबेड़ा गांव में यह समस्या वर्ष 2005 के आसपास पता चली थी। जिसके बाद से यह समस्या बढ़ती गई। गांव
वालों का कहना है कि सरकार को करीब दस साल से इस समस्या के बारे में पता है। मगर पिछले एक डेढ़
साल में उन्होंने उनके उपचार को लेकर सजगता दिखाई। सुपेबेड़ा में कुछ जल शोधन संयंत्र लगाए गए हैं
लेकिन ग्रामीण उसके पानी को लेकर भी आश्वस्त नहीं हैं। पानी की जो वैकल्पिक व्यवस्था की गई है, वह भी
अनियमित है।
कभी सोलर पंप नहीं चलता तो कभी कोई और परेशानी रहती है। पूरे गरियाबंद ब्लॉक में जगह-जगह पानी में
भारी तत्वों यानी हेवी मेटल्स (Heavy Metals in Drinking Water) की उपस्थिति खतरनाक स्तर तक पाई गई है।
सरकार की ओर से हाल ही में 221 स्कूलों में हैंडपंप के पानी की जांच करवाई गई इनमें से 64 की रिपोर्ट आ गई है
और पाया गया कि 40 स्कूलों के पानी में भारी तत्व हैं।
चिकित्सा का अभाव :
गांव वालों का कहना है कि देवभोग में डॉ मार्कंडेय पदस्थ थे और वो बहुत अच्छे डॉक्टर थे। मगर सरकार ने
उनका तबादला कर दिया। मरीजों का इलाज संजीवनी चिकित्सा कोष से किया जा रहा है। पहले जो सुविधा
एक निजी अस्पताल में थी उसे बदलकर मेकाहारा कर दिया गया। मेकाहारा में दी जाने वाली सुविधाओं से
मरीज खुश नहीं हैं।
विकास की पोल खुली :
रमन सिंह और उनकी सरकार पिछले 13 वर्षों से आंखें मूंदे बैठी रही। सुपेबेड़ा में अब तक हुई 170 मौतों के
लिए पूर्व सरकार सीधे जिम्मेदार है। ग्रामीणों का कहना है कि इससे बेहतर होता कि पूरे देवभोग को छत्तीसगढ़
राज्य से काटकर ओडिशा को दे दिया जाए।
कांग्रेस ने की मांग :
– सुपेबेड़ा और आसपास के दर्जन भर गांवों में जो समस्या है इसे तत्काल राजकीय आपदा घोषित कर रोकने
के उपाय किए जाए।
– एक वृहद पेयजल परियोजना की घोषणा करनी चाहिए, जिससे सभी गांवों में पीने का शुद्ध जल उपलब्ध हो सके।
– सुपेबेड़ा में तत्काल एक रेफरल हॉस्पिटल शुरु किया जाए जिससे कि मरीजों को जल्दी इलाज उपलब्ध हो
और तुरंत रायपुर पहुंचाया जा सके।
– हर गांव में हर परिवार के सभी सदस्यों की पूरी जांच के लिए सघन अभियान चलाया जाए।
– नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ पुनीत गुप्ता पर ग्रामीण जो आरोप लगा रहे हैं उनकी जांच होनी चाहिए।
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