रायपुर। प्रदेश के आईएएस अधिकारी उमेश अग्रवाल (Umesh Agrawal) ईओडब्ल्यू (EOW) जांच के घेरे में

जल्द आ सकते हैं। हाल ही में विभाग ने उनके खिलाफ जांच हेतु शासन से अऩुमति दिए जाने की मांग की है।

उनपर  छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउसिंगकॉर्पोरेशन रायपुर प्रबंध संचालक के पद पर रहते हुए अनियमित भर्तियां

कराए जाने का आरोप है। जिसकी जांच अब ईओडब्ल्यू द्वारा की जा रही है।

 

हैरत की बात यह भी है कि छत्तीसगढ़ स्टेट वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन रायपुर के पूर्व एमडी टी राधाकृष्णन (IAS)

द्वारा 30 जुलाई 2016 से ही इन तीनों अधिकारियों को पद से हटाने का प्रस्ताव दिया गया है। शासन द्वारा

इस प्रस्ताव को निरस्त नहीं किया गया है। मगर आज भी ये अधिकारी अपने पद पर बने हुए हैं। इस प्रस्ताव

पर शासन द्वारा निर्णय न लिया जाना साथ ही वेतन समेत तमाम तरह की सुविधाओं का दिया जाना स्वयं ही

कई सवाल खड़े कर रहा है।

 

क्या है मामला

वर्ष 2009-10 के दौरान प्रबंध लेखा व उप प्रबंधक तकनीकी के पदों पर SWC विभाग द्वारा शासन के अनुमोदन

बगैर नियुक्तियां निकाली गई थीं। इतना ही नहीं शासन को इन नियुक्तियों के संबंध में किसी प्रकार का प्रस्ताव भी

नहीं भेजा गया था। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि पिछले 10 सालों से इन पदों पर नियुक्त हुए अधिकारियों को किस

मद के तहत वेतन दिया जा रहा है। इतना ही नहीं प्रबंध संचालक के इशारों पर की गई इन भर्तियों से व्यापमं

(vyapam cg) की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहें है। ऐसे में ईओडब्ल्यू (EOW) ने अपनी विभागीय जांच का

शिकंजा और कस दिया है।

इन पदों पर नियम विरूद्ध की गई भर्तियां

उप प्रबंधक तकनीकी– वेतनमान 15600- 39100 ग्रेड 5400 (मो. आगा हुसैन एवं श्रद्धा जितेंद्र अग्रवाल)

प्रबंधक (लेखा)– 15600-39100 ग्रेड पे 6600 (रितेश अग्रवाल)

 

10 वर्षों से जमें हुए हैं अधिकारी

शासन द्वारा पिछले कई सालों से इन पदों पर हुई नियुक्तियों को लेकर जांच का बहाना करती आई है। जिसके

चलते 10 वर्षों से ये अधिकारी अपने पद पर बने हुए हैं। इतना ही नहीं शासन द्वारा इन्हें महत्तवपूर्ण जिम्मेदारी दी

गई है साथ ही उन्हें सारी सुविधाएं भी दी जा रही हैं।

 

इस मामले की जांच 2010 से जारी है। मगर इस मामले से जुड़े सभी अधिकारी अपने पद का दुरूपयोग करते हुए जांच

को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में ईओडब्ल्यू (EOW) ने मांग की है कि जांच के दौरान इन अधिकारियों को मुख्यालय से दूर

रखा जाए जिससे इस मामले की निष्पक्ष जांच हो सके।

व्यापमं द्वारा दी गई सूची से नाम गायब

जांच के दौरान व्यापमं द्वारा चयनित अभ्यार्थियों की सूची दी गई है जिसमें से तीनों के नाम ही गायब हैं।

इतना ही नहीं उनके नाम प्रतिभा सूची में भी शामिल नही है। साथ ही जानकारी मिली है कि इनका चयन

भी महज 50 फीसदी अंकों के आधार पर किया गया है। इसके अलावा अभ्यार्थियों के पास इस पद के लिए

योग्यता भी नहीं थी। एक अभ्यार्थी ने पद पर नियुक्ति के 6 वर्ष बाद बीकॉम का प्रमाण पत्र जमा किया है।

 

व्यापमं को केवल तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर ही परीक्षा लेने का अधिकार है ऐसे में यह सवाल

उठना भी लाजमी है कि व्यापमं ने द्वितीय श्रेणी के पद हेतु परीक्षा किस अधिकारी के निर्देश पर ली।

ऐसे में यह मामला स्वयं भी संदेह के दायरे में आ जाता है।

 

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