रायपुर। दीपावली कार्तिक महीने की अमावस्या को लक्ष्मी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर को साफ और पवित्र किया जाता है और दीपक जलाए

जाते हैं। इस साल दीपावली कार्तिक माह की अमावस्या पर तुला राशि और चित्रा नक्षत्र में मनाई जाएगी।

आज पद्म योग बन रहा है। इस योग में लक्ष्मी जी की पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है।

 

खरीदारी और पूजा के मुहूर्त

सुबह 08:10 से 11:55 तक

दोपहर 01:35 से 02:50 तक

शाम 05:40 से रात 10:20 तक

निशिता मुहूर्त – रात 11:40 से 12:25

वृष लग्न – शाम 06:45 से रात 08:25 तक

सिंह लग्न – रात 01:15 से 03:20 तक सिंह लग्न

 

लक्ष्मी-गणेश पूजा के लिए स्थापना

पूजा के स्थान पर लक्ष्मीजी और गणेशजी की मूर्तियां स्थापित करें। ये मूर्तियां इस तरह रखें कि उनका मुख

पूर्व या पश्चिम में रहे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें

कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुणदेव का प्रतीक है। अब दो

बड़े दीपक रखें। एक में घी और दूसरे में तेल का दीपक लगाएं। एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें और

दूसरी मूर्तियों के चरणों में। इनके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।

 

पूजा की थाली

पूजा की थाली के संबंध में शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि लक्ष्मी पूजन में तीन थालियां सजानी

चाहिए। पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रख कर सजाएं। दूसरी थाली में पूजन सामग्री इस

क्रम से सजाएं- सबसे पहले खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुमकुम,

सुपारी और थाली के बीच में पान रखें। तीसरी थाली में इस क्रम में सामग्री सजाएं- सबसे पहले फूल,

दूर्वा, चावल, लौंग, इलाइची, केसर-कपूर, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

 

सफाई का रखें ध्यान

घर को साफ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें और स्वयं भी स्नान आदि कर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक शाम

के समय शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। दिवाली पूजन के लिए किसी चौकी

या कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। श्रीमहालक्ष्मीजी

की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में केसरयुक्त चंदन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर कुछ रुपए रखें,

एक साथ ही दोनों की पूजा करें।

 

सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा

सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृका (सोलह देवियों का)

पूजन करें। इसके बाद प्रधान पूजा में मंत्रों से पूजा की सभी सामग्री द्वारा महालक्ष्मी का पूजन करें। लक्ष्मी पूजा

के समय आभूषण, सोना और चांदी के सिक्कों की पूजा करें। इसके साथ ही तिजोरी और घर में स्थिति मंदिर

में हल्दी और केसर घोलकर उस पानी से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं। उस स्वास्तिक पर लक्ष्मीजी को स्थापित

कर के पूजा करें।

 

लक्ष्मी पूजा के मंत्र

1. ॐ श्रीं श्रीयै नम:

2. ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥

3. ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

समर्पण – पूजा के आखिर में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम। यह बोलकर सभी पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें और जल छोड़ें।

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