टीआरपी डेस्क। इन दिनों 24×7 शिफ्ट में काम करने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। लिहाजा बड़ी संख्या में

लोगों को नाइट शिफ्ट में काम करना पड़ता है या फिर हर हफ्ते उनकी शिफ्ट और शेड्यूल में बदलाव होता

रहता है।

 

यानी कभी मॉर्निंग शिफ्ट तो कभी इवनिंग तो कभी नाइट। ऐसे में अगर आप भी इस तरह के शेड्यूल में काम

करते हैं तो न सिर्फ आपको मोटापा और डायबीटीज का जोखिम अधिक है बल्कि यह बदलती शिफ्ट आपको

मानसिक रोगी भी बना सकती है।

इन ​बीमारियों का खतरा

डिप्रेशन और चिंता

ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि शिफ्ट में काम करने वालों को

डिप्रेशन और चिंता होने की संभावना 33 प्रतिशत अधिक थी। विशेष रूप से उन लोगों की तुलना में जो नाइट शिफ्ट

में काम नहीं करते थे या फिर वैसे लोग जो 9 से 5 बजे वाली शिफ्ट करते थे।

 

मानसिक बीमारियों का खतरा

इसके अलावा शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होने की संभावना भी

28 प्रतिशत अधिक होती है। यह परिणाम पिछले 7 अध्ययनों में शामिल 28 हजार 438 प्रतिभागियों की जांच

करने के बाद सामने आया है।

 

चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग

स्टडी में शामिल विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार शिफ्ट में बदलाव होने से हमारे सोने और जागने की आदत पर असर

पड़ता है और हमारा शरीर इस सोने-जागने की आदत में बार-बार हो रहे इस बदलाव को नहीं झेल पाता। जिससे लोगों में

चिड़चिड़ापन आ जाता है। इसके अलावा यह मूड स्विंग और सामाजिक अलगाव का कारण भी बनता है जिससे परिवार

और दोस्तों से रिश्ते प्रभावित होने लगते हैं।

 

डायबीटीज, मेटाबॉलिक सिंड्रोम

जापान में हुई एक स्टडी में यह बात सामने आयी कि वैसे लोग जो शिफ्ट में काम करते हैं उन्हें डे वर्कर्स की तुलना में

डायबीटीज होने का खतरा 50 प्रतिशत अधिक था। साथ ही ऐसे लोगों में मेटाबॉलिक सिंड्रोम जिसमें कई तरह की हेल्थ

प्रॉब्लम्स जैसे- हाई बीपी, हाई ब्लड शुगर, मोटापा और अनहेल्दी कलेस्ट्रॉल लेवल की समस्या शामिल है।

 

व्यायाम करें, परिवार के लिए निकालें समय

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि व्यायाम के लिए समय निकालने, दिन के उजाले के दौरान बाहर जाने और परिवार-

दोस्तों के साथ समय बिताने से सामाजिक अलगाव को सीमित करने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है।

 

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