टीआरपी डेस्‍क। 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले को 11 साल पूरे हो

चुके हैं। आतंकी हमले से दहल उठा मुंबई शहर लंबे अर्से तक इससे उबर नहीं पाया था।

इस हमले ने 166 लोगों की जान ले ली और 300 से अधिक लोग घायल हो गए।

 

इसकी बरसी पर मंगलवार को जहां कई लोगों ने शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आज

सोशल मीडिया का सहारा लिया, वहीं हमलों में बचे कई लोगों ने अपने अनुभव शेयर किए।

इनमें से कुछ प्रेरणादायी और भावुक कर देने वाली पोस्‍ट हैं जो सोशल मीडिया पर असर

छोड़ रही हैं।

 

ऐसी ही एक पोस्‍ट मुंबई की देविका ने लिखी है जो अब वायरल हो रही है। इसे पढ़कर कई

लोगों की आंखें नम हो आईं। इंस्‍टाग्राम पर मुंबई में Humans of Bombay नाम का एक

पेज बना हुआ है। इस पेज पर देविका की पोस्‍ट को जगह दी गई है।

 

वह उस आतंकी हमले में बचे हुए लोगों में से एक है। पोस्‍ट के अनुसार, आतंकी कसाब ने

उसे पैर में गोली मारी थी। जब हमला हुआ वह केवल 10 साल की थी और सीएसटी स्टेशन

पर थी।हमले के बाद कसाब एकमात्र जीवित पकड़ा गया आतंकी था। जब कोर्ट में गवाही

का क्षण आया तक देविका ने उसके खिलाफ गवाही दी थी। नवंबर 2012 में कसाब को

फांसी दे दी गई थी।

यह लिखा है देविका ने पोस्‍ट में

 

“मैं उस समय दस साल की थी। एक गोली ने मेरे दाहिने पैर को छेद दिया था। यह

घटना सीएसटी स्टेशन पर हुई थी। मैं अपने पिता और भाई के साथ थी और हम

टॉयलेट यूज करने के लिए थोड़ी देर के लिए वहां रुक गए थे।

 

इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, चारों ओर अफरा-तफरी मच गई थी। मुझे बेहद

दर्द हुआ और मैं वहीं गिर गई। बाद में डॉक्‍टर ने बताया कि उस रात क्या हुआ था। मैं

बहुत गुस्से में थी। स्टेशन पर मरने वाली महिलाओं और बच्चों की झलक मेरे जेहन में

हो आई।

 

आतंकी का चेहरा मेरी याददाश्‍त में था। वह उनके चेहरे की थी। मैंने खर्च किया। अस्पताल

में डेढ़ महीने तक मेरा इलाज चला और घाव का ऑपरेशन हुआ। लेकिन मेरे दिमाग से उस

आतंकी का चेहरा नहीं निकल सका।

 

जैसे ही मैं ठीक हुई, मैं अपने परिवार के साथ अपने गांव वापस चली गई। पुलिस ने मेरे पिता

से अदालत में गवाही के लिए संपर्क किया था। हमें हमलावर की पहचान करनी थी क्योंकि

घायलों में हम कुछ एकमात्र जीवित बचे थे। मैं डरी नहीं थी, बल्कि चाहती थी कि उसे सजा

दी जाए।

 

हमारे पूरे परिवार ने इस निर्णय के बाद हमसे बात करना बंद कर दिया, उन्होंने सोचा कि

आतंकवादियों द्वारा हमला किया जाएगा क्योंकि हम गवाही देने वाले थे। मैं बैसाखी में

अदालत गई। वहां मेरे सामने पेश किए गए चार लोगों में से मैंने तुरंत अजमल कसाब को

पहचान लिया।

 

मेरा दिल गुस्से से भर गया। मैं वहीं न्याय चाहती थी। इस घटना ने मुझे एक आईपीएस

अधिकारी बनने के लिए प्रेरित किया। लेकिन अदालत में गवाही देने का फैसला परिवार

को महंगा पड़ा।

 

मुझे लगा था कि मैं साहसी बन रही हूं लेकिन दूसरी तरफ हर कोई हमसे अलग हो गया।

मेरे पिता की ड्राई फ्रूट की दुकान बंद हो गई क्योंकि कोई भी उसके साथ व्यापार नहीं

करना चाहता था। जमींदारों ने किराया बढ़ा दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि हमने पब्लिसिटी

से पैसा कमा लिया है।

 

भले ही अजमल कसाब अब जीवित नहीं है, लेकिन मेरा मन खिन्‍न है। मेरा गुस्सा केवल तभी

कम हो पाएगा जब मैं एक आईएएस अधिकारी बन जाउंगी और अन्‍याय के खिलाफ लड़ूंगी।

 

आज तक मैं दिवाली का आनंद नहीं ले सकी, क्रिकेट में भारत की जीत का जश्न नहीं मना सकी

क्योंकि आतिशबाजी देखते ही मुझे वह बुरी यादें परेशान करती हैं।

 

मुझे पता है मैं ये सारे बीते हुए वर्ष दोबारा हासिल नहीं कर सकती लेकिन एक दिन इनका जवाब

मेरे सामने होगा। ये आतंकी लोग एक दिन भारत के खिलाफ सिर उठाने का अंजाम भी देखेंगे।

 

 

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