टीआपी डेस्क। फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह शेखों भारतीय वायुसेना के वह अफसर थे जिन्होंने 1971

में पाकिस्तान के मंसूबों को खाक में मिला दिया था। श्रीनगर एयरफील्ड पर हमला करने आए पाक के दो

विमान को उन्होंने मार गिराया। बाकी 4 को भागना पड़ गया।

 

उनका जन्म 17 जुलाई, 1945 को लुधियाना (पंजाब) के इस्सेवाल गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम

त्रिलोक सिंह शेखों और माता का नाम हरबंस कौर था। उनका गांव लुधियाना के करीब हलवाड़ा में स्थित

भारतीय वायुसेना बेस के करीब था। इस वजह से बचपन से ही उनके अंदर विमानों और वायुसेना जीवन

को लेकर खास आकर्षण था। उनके पिता भी भारतीय वायुसेना में अपनी सेवा चुके थे और मानद फ्लाइट

लेफ्टिनेंट के तौर पर सेवानिवृत्त हुए थे। पिता का भी उन पर काफी प्रभाव पड़ा था। 14 दिसंबर, 1971

को वह पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हो गए थे।

 

शिक्षा और करियर :

फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत ने लुधियाना के करीब स्थित खालसा हाई स्कूल अजितसर मोही से पढ़ाई की।

1962 में उन्होंने आगरा स्थित दयालबाग इंजिनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया। लेकिन उन्होंने बीच में ही

इंजिनियरिंग छोड़ दी और भारतीय वायुसेना में शामिल हो गए। 4 जून, 1967 को उनको भारतीय वायुसेना

में फाइटर पायलट के तौर पर कमिशन किया गया। सख्त प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद अक्टूबर 1968 में

फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत की नियुक्ति नंबर 18 स्क्वॉड्रन में हुई। उस स्क्वॉड्रन को ‘फ्लाइंग बुलेट्स’ के नाम

से जाना जाता था।

14 दिसंबर, 1971 वो दिन

1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत जीनैट दस्ते में पायलट के तौर पर

श्रीनगर में तैनात किए गए थे। पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति पैदा होने से पहले श्रीनगर में भारतीय वायुसीमा

की रक्षा के लिए कोई विमान तैनात नहीं था। ऐसा 1948 में हुई अंतरराष्ट्रीय संधि की वजह से था। भारतीय

वायुसेना के जिस दस्ते की पहली बार तैनाती श्रीनगर में हुई, वह दस्ता निर्मलजीत का था। इस वजह से वह

कश्मीर की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ नहीं थे और जलवायु भी उनके अनुकूल नहीं थी। कश्मीर की जमा देने

वाली ठंड और सर्द हवा की उनको आदत नहीं थी। इसके बावजूद उन्होंने पूरी बहादुरी और दृढ़ निश्चय के

साथ पाकिस्तानी घुसपैठी विमानों का सामना किया। 14 दिसंबर, 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड में पाकिस्तानी

वायुसेना के 26 स्क्वॉड्रन के छह एफ-86 जेट्स ने हमला किया।

आखिरी संदेश मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ…मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा…’

उसके कुछ ही क्षण बाद नेट से आक्रमण की आवाज़ आसपान में गूँजी और एक सेबर जेट आग में जलता

हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपना सन्देश प्रसारित किया:

 

‘मैं मुकाबले पर हूँ और मुझे मजा आ रहा है। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सेबर जेट हैं। मैं एक का ही पीछा कर रहा हूँ, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है।’
इस सन्देश के जवाब में स्क्वेड्रन लीडर पठानिया ने निर्मलजित सिंह को कुछ सुरक्षा सम्बन्धी हिदायत दी, जिसे उन्होंने पहले ही पूरा कर लिया था। इसके बाद नेट से एक और धमाका हुआ जिसके साथ दुश्मन के सेबर जेट के ध्वस्त होने की आवाज़ भी आई। अभी निर्मलजीत सिंह को कुछ और भी करना बाकी था, उनका निशाना फिर लगा और एक बड़े धमाके के साथ दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का सन्देश फिर सुना गया। उन्होंने कहा-
‘शायद मेरा नेट भी निशाने पर आ गया है… घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।’

 

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