जगदलपुर।आप सब ने कैंसर जैसी बीमारी का नाम तो सुनना ही होगा जो पुरे विश्व में फैला हुआ हैं जिसका मुख्य कारण है कीटनाशकों और कैमिकल युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन। आयुर्वेद में हल्की को बड़ा गुणकारी माना गया है, विशेषकर कैंसर जैसी घातक बीमारी में बस्तरिया हल्दी का सेवन काफी लाभदायक होता है।

क्योंकि बस्तर इलाके में इन दिनों सैकड़ों आदिवासी महिलाएं आर्गेनिक हल्दी के उत्पादन में जुटी हुई हैं। इसमें कैंसर रोधी तत्व करकुमिन सामान्य हल्दी के मुकाबले अधिक मात्रा में पाया जाता है। प्रोसेसिंग व पैकेजिंग के लिए प्रोसेसिंग प्लांट भी तैयार हो रहा है। ऑनलाइन मार्केटिंग की भी तैयारी है। हल्दी की खेती से जुड़े परिवारों का जीवनस्तर अब सुधर रहा है।

वैज्ञानिक डॉ. केपी सिंह ने बताया कि बस्तर की भूमि हल्दी की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है। यहां की हल्दी में करकुमिन तत्व देश के अन्य स्थानों पर पाई जाने वाली हल्दी की अपेक्षा सर्वाधिक है। करकुमिन एंटी बैक्टीरियल तत्व है, गंध से इसकी पहचान होती है।

 

इस खेती की खास बात यह है कि खेत में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न कर इसे पूरी तरह से जैविक रूप दिया गया है। हल्दी की फसल नौ महीने की होती है। जून में इसके कंद को खेतों में लगाया जाता है, जो फरवरी में तैयार हो जाता है।

आर्गेनिक हल्दी की खेती से जुड़े प्रारंभिक प्रायोगिक परीक्षणों के नतीजे बेहद उत्साहवर्धक हैं। इसका वृहद उत्पादन आदिवासी बहुल क्षेत्रों के परिवारों की आर्थिक तरक्की व उन्न्ति का सशक्त आधार बनेगा। प्रोसेसिंग के साथ ही अब ऑनलाइन मार्केटिंग की भी तैयारी चल रही है।

 

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