नई दिल्ली/जशपुर/रायपुर। देश में आदिवासी हितों के लिए संघर्ष करने वाले डॉ. अभय खाखा का दिल का दौरा पड़ने से 37 वर्ष की आयु में शनिवार को निधन हो गया। डॉ. खाखा प्रदेश के जशपुर जिले के रहने वाले थे। उनके निधन पर सीएम भूपेश बघेल ने दुख व्यक्त किया है।

भूपेश बघेल ने ट्वीट कर कहा कि युवा आदिवासी एक्टिविस्ट डॉ अभय खाखा के निधन की सूचना दुखद है। छत्तीसगढ़ से निकलकर विश्व मंच तक पहुंचने वाले वे संभवत: पहले आदिवासी होंगे। अभी आदिवासियों हितों की योजनाओं पर हमने काम शुरु ही किया है। उनका होना हमें संबल ही देता है।
डॉ. अभय खाखा का जन्म छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में हुआ था। वह वहीं पले-बढ़े। खाखा जेएनयू से पढ़े थे और फोर्ड फेलोशिप पर विदेश में पढ़ाई करने पहले आदिवासी थे। डॉ. अभय की ट्रेनिंग एक सोशियोलॉजिस्ट के तौर पर हुई।
वह जमीनी संगठनों से जुड़े रहे और आदिवासियों के अधिकारों के लिए एनजीओ, अलग-अलग जन अभियानों, एनजीओ, मीडिया और शोध संस्थानों के साथ मिलकर काम करते रहे।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के वनाधिकार को लेकर वह खासे मुखर थे।
आदिवासी अधिकारों के लिए चलाए जा रहे नेशनल कैंपेन के वह संयोजक थे। वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइट्स के लिए लिखते रहे।
वनाधिकार कानून के खिलाफ जिंदगी भर लड़ते रहे
आदिवासियों की जिंदगी की कठिनाई से वह काफी पहले ही रूबरू हो गए थे। जनजातीय समुदाय से आने की वजह से उन्हें इसका बखूबी अंदाज था। 1990 के दशक में जब खाखा सेकेंडरी के छात्र थे तो उन्हें औपनिवेशक काल से चले आ रहे भारतीय वनाधिकार कानून, 1927 के तहत जेल में बंद कर दिया गया था। खाखा को जंगल से जलावन की लकड़ी इकट्ठा करने के आरोप में जेल में बंद कर दिया गया था।
स्कूल हॉस्टल में दिन का खाना बनाने के लिए लकड़ी इकट्ठा करने गए खाखा को आखिरकार जमानत पर रिहा किया गया। इस तरह के कुछ और अनुभवों ने उन्हें आदिवासी हितों के संघर्ष के लिए प्रेरित किया। बाद में वह जेएनयू आए और फोर्ड फेलोशिप पर पढ़ने के लिए विदेश चले गए।
लौट कर उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों के लिए आंदोलन जारी रखा। ट्राइबल इंटेलेक्चु्अल कलेक्टिव और नेशनल कोलेशन फॉर आदिवासी जस्टिस के संयोजक के तौर उन्होंने देश में अलग-अलग जगहों पर चल रहे आदिवासी संघर्षों को एक आवाज और पहचान दी।
युवा आदिवासी एक्टिविस्ट डॉ अभय खाखा के निधन की सूचना दुखद है।
छत्तीसगढ़ से निकलकर विश्व मंच तक पहुंचने वाले वे संभवत: पहले आदिवासी होंगे। अभी आदिवासियों हितों की योजनाओं पर हमने काम शुरु ही किया है। उनका होना हमें संबल ही देता।
विनम्र श्रद्धांजलिhttps://t.co/LHaMRN7Ahk
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) March 15, 2020
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