नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनित किया है। पूर्व सीजेआई गोगोई अयोध्य राम मंदिर समेत कई बड़े मसलों पर फैसला सुना चुके हैं।

लोकायुक्त की नियुक्ति

जस्टिस गोगोई का 16 दिसंबर 2015 को दिया गया एक आदेश उन्हें इतिहास में खास मुकाम पर दर्ज कराता है। देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए किसी राज्य का लोकायुक्त नियुक्त किया था। जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सेवानिवृत न्यायाधीश जस्टिस वीरेन्द्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त करने का आदेश जारी किया था। न्‍यायमूर्ति गोगोई ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि सर्वोच्च अदालत के आदेश का पालन करने में संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का नाकाम रहना बेहद अफसोसजनक और आश्चर्यचकित करने वाला है। कोर्ट को लोकायुक्त की नियुक्ति का स्वयं आदेश इसलिए देना पड़ा था क्योंकि कोर्ट के बार बार आदेश देने के बावजूद लोकायुक्त की नियुक्ति पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, नेता विपक्ष और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश में सहमति नहीं बन पाई थी।

काटजू को होना पड़ा था शीर्ष अदालत में पेश

गोगोई के कार्यकाल की दूसरी ऐतिहासिक घटना 11 दिसंबर 2016 की है। इसमें केरल के चर्चित सौम्या हत्याकांड के फैसले पर ब्लाग में टिप्पणी करने पर जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत न्‍यायमूर्ति मार्कडेय काटजू को अदालत में तलब कर लिया था। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई सेवानिवृत न्‍यायमूर्ति सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ हो और उसने बहस की हो। इतना ही नहीं बहस के बाद शीर्ष अदालत उसको अवमानना का नोटिस जारी कर दे। न्‍यायमूर्ति गोगोई की अध्‍यक्षता वाली पीठ ने काटजू को अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा था कि ब्लाग पर की गई टिप्पणियां प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण हैं।

समयसीमा से पहले सरकारी आवास छोड़ पेश की थी मिसाल

यही नहीं भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने अपने एक महीने की समयसीमा से काफी पहले ही 5 कृष्णा मेनन मार्ग पर मिले अपने सरकारी घर को खाली करके एक मिसाल पेश की थी। सेवानिवृत्ति के महज तीन दिन बाद ही अपने आधिकारिक निवास को खाली करने वाले गोगोई देश के पहले मुख्य न्यायाधीश रहे। हालांकि इससे पहले पूर्व चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने भी अपने रिटायरमेंट के एक हफ्ते बाद आधिकारिक आवास को छोड़ करके एक मिसाल पेश की थी।

ऐसे की थी कॅरियर की शुरुआत

रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ था। उन्होंने 1978 में बतौर एडवोकेट अपने कार्यकाल की शुरुआत की थी। अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने गुवाहाटी होईकोर्ट में वकालत की। 28 फरवरी 2001 को गुवाहटी हाईकोर्ट में उन्हें स्थायी न्यायमूर्ति के तौर पर नियुक्त किया गया। वह 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस बने। फिर पदोन्‍नत‍ि के बाद वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बने। तत्‍कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के रियाटर होने के बाद गोगोई को चीफ जस्टिस का पद मिला था। शपथ लेने के साथ ही उन्होंने अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए एक संवैधानिक बेंच का गठन किया था। उन्‍होंने खुद उस पीठ की अगुवाई की थी।

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