टीआरपी डेस्क। भारत की आजादी के लिए फांसी के फंदे को गले लगाने वाले महान शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का आज शहीदी दिवस है। आजादी के लिए लड़ने वाले भारत माता के इन वीर सपूतों को सदैव याद किया जाएगा।

खटकड़कलां भगत सिंह का पैतृक गांव है। भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह पहले सिख थे, जो आर्य समाजी बने। 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के बाद भगत सिंह आजादी के लिए लड़ने के सपने देखने लगे।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे और शादी की बात चलते ही वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए। ऐसे ही कई और भी किस्से हैं जो आज हम आपको बताने जा रहे हैंः

एक दिन के थानेदार बने थे भगत सिंह के पिता

PunjabKesari, Some unheard and special stories related to Bhagat Singh's life

एक समाचार पत्र के संवाददाता ने जब सरदार भगत सिंह के भांजे सरदार जगमोहन सिंह से बातचीत की तो उन्होंने भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कई अनसुनी कहानियां बताईं। उन्होंने बताया कि हमारे नाना (भगत सिंह के पिता) सरदार किशन सिंह को भी अंग्रेजी सेना में थानेदार की नौकरी मिली थी।

पहले दिन ही वे नौकरी पर गए और उनके थाने में एक हत्या का मुकदमा आया। एक विधवा महिला के बेटे का मर्डर हुआ था। महिला अपने सारे जेवर लेकर थाने पहुंची और नाना के पैरों पर गिरकर बोली- साहब सारे जेवर ले लो, लेकिन इंसाफ दिलवाओ।

वे कुछ बोल पाते उससे पहले ही दूसरा पक्ष भी थाने पहुंच गया और ढेर सारे सोने के सिक्के देने के एवज में मदद की मांग करने लगा। इस घटना ने उन्हें इतना झकझोर दिया कि उन्होंने उसी दिन नौकरी छोड़ दी।

पेन चुभा कर पैर कर दिया था लहूलुहान

सरदार जगमोहन सिंह ने बताया कि यह किस्सा तब का है जब मां (भगत सिंह की बहन) 10 साल की थीं। मामा भगत सिंह काफी गंभीरता से बैठे कुछ लिख रहे थे। उसी दौरान उनकी मां दौड़ती हुई आईं और उनकी कॉपी देखने लगीं।

उन्होंने उसी पेन को मां के पैर में चुभा दिया। पैर से खून निकलने लगा और वो दर्द से चीख पड़ीं। फिर से मामा ने चुप कराते हुए कहा कि मैं तुम्हें पीड़ा नहीं दे रहा। बस यह देखना चाहता था कि दो साल बीतने के बाद तुम्हारी सहनशक्ति कितनी बढ़ी।

बहन के सीने पर रख दी थी जलती लालटेन

सरदार जगमोहन सिंह ने बताया कि 8 साल की उम्र में एक बार जब सरदार भगत सिंह अपनी छोटी बहन के साथ बैठ कर पढाई कर रहे थे। उस दौरान भगत सिंह कोई किताब पढ़ रहे थे। उसी समय उत्सुकता से छोटी बहन ने उनकी किताब देखने की कोशिस की।

तब भगत सिंह ने अपनी 4 साल की बहन के सीने पर जलती लालटेन रख दी। जिससे वह कई जगह झुलस गई। जैसे ही वह चिल्लाई भगत सिंह ने बहन का मुंह बंद करते हुए कहा कि चिल्लाना नहीं, मैं तो देखना चाहता था कि तुममें कितनी सहन शक्ति है।

जब सहन शक्ति होगी, तभी देशभक्ति की राह में आगे चल पाओगी। भगत सिंह से यह बात सुनकर छोटी बहन ने अपनी पीड़ा को सहते हुए चिल्लाना बंद कर दिया।

सच जानने पहुंच गए थे जलियांवाला बाग

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जगमोहन सिंह बताते हैं कि 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त भगत सिंह 12 साल के थे। घटना का पता चलते ही वे घर से बिना किसी को बताए जलियांवाला बाग पहुंच गए। वहां उन्होंने खून से सनी मिट्टी को एक शीशी में भरा और वापस आ गए।

उन्होंने अपनी छोटी बहन यानी मेरी मां अम्बर कौर को वो मिट्टी दिखाई और बोले कि देखो ताऊजी व बड़े भैया कितना झूठ बोलते हैं। खून से सनी ये मिट्टी अंग्रेजों की क्रूरता का उदाहरण है।

लोगों को बचाते-बचाते गल गया था पैर

जगमोहन सिंह ने बताया कि भगत सिंह तैराकी और नौका चलाने के बेहद शौकीन थे। वे कितने भी गहरे पानी में बांस के सहारे चल सकते थे। 1926 में कानपुर में भीषण बाढ़ आई। तब वह बीके दत्त के साथ मिलकर काफी दिनों तक बाढ़ पीड़ितों को बचाने में लगे हुए थे।

जगमोहन सिंह की मां उन्हें बताती थीं कि लौटते वक्त उनके पैर का निचला भाग लगातार पानी में रहने के कारण गल गया था।

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