उचित शर्मा

मौजूद समय में अब सम्पूर्ण राष्ट्र महामारी “कोरोना” के खिलाफ जंग लड़ रहा है, समाज के गरीब वर्ग और आर्थिक संकट झेल रहे परिवारों को सहयोग देना आवश्यक है। जहाँ प्रधानमंत्री कोष और मुख्यमंत्री कोष में लोग धन राशि जमा कर सामाजिक प्रतिब्द्धता दिखा रहे हैं, वहीं देश के प्रख्यात लोगों और राजनेताओं के बीच एक असमानता दिख रही है। जहाँ अजीम प्रेमजी ने राष्ट्र को बहुत बड़ी राशि अपने अर्जित सम्पति में से दी है, वहीं अनुशरण करते वेदांता के अनिल अग्रवाल और टाटा समूह ने अपना दिल खोल कर राशि दी। आनंद महिन्द्रा, अड़ानी और अन्य बड़े व्यव्सायियों ने बड़ी रकम दी। सचिन ,सौरभ जैसे खिलाड़ियों ने भी सहयोग किया। पवन कल्याण प्रभास, अक्षय कुमार, रजनीकांत जैसे रजत पटल के सितारे भी हैं। कुछ बड़े व्यवसायी, खिलाड़ी और सिनेजगत के लोगों की सहभागिता या तो अल्प है या फिर अभी शून्य है ? आपदा के समय जरूरतमंद लोगों की सहायता न सहभागी न बनना या यथाशक्ति सहभागिता न रखना निश्चित तौर पर उनके समाजिक, प्रतिब्द्धता और संस्कारों पर प्रश्न चिन्ह है। कर्मचारी और अधिकारियों का संगठन सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत लोगों ने भी अपने वेतन के हिस्से को सहयोग राशि के रूप में दिया। देश के बड़े मंदिर श्रीतिरुपति बालाजी, शिर्डी धाम, वैष्णो देवी, सालासर बालाजी जैसे देवालयों ने भी अपने भण्डार से सहयोग दिया। बड़े व्यवसायिक घरानों को यदि लगता है, कि आपदा बड़ी है, तो ऐसे पुनीत कार्य में सहभागी अवश्य बनना चाहिए, अन्यथा ये देश अभाव और कष्ट में जीना जानता है।

सबसे आश्चर्य राजनेताओं के योगदान को लेकर है। देश में सैकड़ों, हजारों का धन राशि रखने वाले राष्ट्रीय दलों ने न ही अपने खजाने का मुँह खोला है, न ही चुनाव अभियान के दौरान कार्यकर्ता के सहयोग करने जैसे अपील की है। सरकारी सांसद निधि और एक महीने के वेतन प्रदान कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे है। सहयोग और दान का अर्थ अपने अर्जित किए गए धन का हिस्सा देना है न कि शासकीय देयकों अधिकारों का स्थानंतरण।

ये अपने अपने हिसाब से राहत कोष में पैसा जमा कर रहे हैं, जैसे सुश्री सरोज पाण्डे ने प्रधानमंत्री कोष तो छाया वर्मा मुख्यमंत्री राहत कोष में। ये शायद भूल गए हैं, राजनेताओं की राजनीति जनता से चलती है, न कि राजनीति से जनता। राष्ट्रीय आपदा और सच की लड़ाई में कोई अपना पराया नहीं होता। केंद्र या राज्य आपदा कोष मायने नहीं रखते दोनों जनकल्याण के लिए है, पर राजनीति विचारों को आपदा के समय त्याग करें तो बेहतर है, वर्ना जनता परोपकार और प्रचार में भेद करना जानती है।

राज्य सरकार की यदि धन या संसाधन की कमी हो तो सभी सांसद सुर में सुर मिलकर राष्ट्रीय सरकार के समक्ष अपनी बात रखेंगे, ऐसा राज्य की जनता का विश्वास है। राज्य सरकार भगोड़े और आर्थिक अपराध के आरोपियों की सम्पति जब्त कर जनकल्याण में लगा दें, यदि परिस्थितियाँ प्रतिकूल रहे। लोगों को कोष में सहयोग के लिए आगे आना होगा। सरकार गोपनीय दान करने वाले लोगों से भविष्य से सवाल न करें तो आर्थिक भ्रष्ट और टैक्स चोरों में भी मानवता जाग सकती है। राज्य सरकार का कार्य प्रशंसनीय है,पर कुछ कड़े कदम उठाने होंगे , जिससे राज्य को पूर्ण सुरक्षित किया जा सके। वैसे भी राज्य लुंज-पुंज नहीं चलते ये चलते है रौब से।

सभी से सजग सतर्क और घर में रहने की अपील करता है। आपदा कोष में अपना योगदान दें और अपनी समाजिक प्रतिब्द्धता का प्रदर्शन करें। सभी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के निर्देशों का पालन आवश्यक रूप से करें।