टीआरपी डेस्क। भारत और चीन के बीच वर्तमान में हालात बिगड़ते नजर आ रहे हैं। देश में चारों ओर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की आवाज बुलंद होते जा रही है। लेकिन इन सबके बीच ऐसी भी कई महत्वपूर्ण बातें है, जिसे जानना जरूरी है। क्या आपको डायबिटीज़, ब्लड-प्रेशर, थाइरॉइड या गठिया जैसे किसी बीमारी के लिए दवा खानी पड़ती है? क्या आपके किसी जानने वाले का कोलेस्ट्रोल बढ़ने पर डॉक्टर ने उसे चंद हफ़्तों की दवा का कोर्स कराया है, क्योंकि इसका बढ़ना हार्ट के लिए अच्छा नहीं होता।

हम में से बहुतों ने सर्दी, खाँसी या बुखार के दौरान पैरासिटामोल वाली कोई न कोई दवा ज़रूर खाई होगी। ज़्यादा दिन वायरल या इंफ़ेक्शन रहने पर डॉक्टर ने आपको एंटिबायोटिक का कोर्स कराया होगा।

घर, रिश्तेदारी, पड़ोस या दफ़्तर में किसी को कैंसर हुआ हो और उनके इलाज में कीमोथेरेपी का सहारा लिया गया हो। इन सवालों में अगर ऐसा आपने देखा या किया, है तो इस बात को भी जानना होगा कि इनमें से कई दवाओं में भारत के पड़ोसी चीन का भी योगदान है।

बीबीसी न्यूज़ चैनल की वेबसाइट के रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो दशकों में भारत और चीन के बीच का व्यापार 30 गुना बढ़ा है। यानी जहाँ 2001 में कुल व्यापार तीन अरब डॉलर का था तो 2019 आते-आते ये 90 अरब डॉलर छू रहा था।

इस व्यापार में जिन चीज़ों की मात्रा तेज़ी से बढ़ी है उनमें दवाइयाँ शामिल हैं। ख़ासतौर से पिछले एक दशक के दौरान जब दवाइयों के आयात में 28% का उछाल दर्ज किया गया।

भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि 2019-20 के दौरान भारत ने चीन से 1,150 करोड़ रुपए के फ़ार्मा प्रॉडक्ट्स आयात किए जबकि इसी दौरान चीन से भारत आने वाले कुल आयात क़रीब 15,000 करोड़ रुपए के थे।

बात दवाओं की हो तो जेनेरिक दवाएं बनाने और उनके निर्यात में भारत अव्वल है। साल 2019 में भारत ने 201 देशों से जेनेरिक दवाई बेची और अरबों रुपए की कमाई की।

लेकिन आज भी भारत इन दवाओं को बनाने के लिए चीन पर निर्भर है और दवाओं के प्रोडक्शन के लिए चीन से एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स (API) आयात करता है।इसे दवाइयां बनाने का कच्चा माल या बल्क ड्रग्स के नाम से जाना जाता है।

इंडस्ट्री के जानकार बताते हैं कि भारत में दवा बनाने के लिए आयात होने वाली कुल बल्क ड्रग्स या कच्चे माल में से 70% तक चीन से ही आता है।

चीन की निर्यात स्ट्रैटिजी पर “कम्पिटिटिव स्टडीज़: लेसन्स फ़्रोम चाइना” नाम की किताब के लेखक और गुजरात फ़ार्मा एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर जयमन वासा का मानना है, “इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि चीन से आयात किए बिना हमें दिक्क़त हो सकती है।”

उन्होंने बताया, “भारत सरकार जब तक ज़्यादा से ज़्यादा फ़ार्मा पार्क या ज़ोन नहीं बनाएगी तब तक चीन की बराबरी करना मुश्किल है, क्योंकि उनका शोध बेहद ठोस है। इस बराबरी तक पहुँचने में हमें कई साल लग जाएंगे।”

हक़ीक़त यही है कि भारत में एपीआई (API) का उत्पादन बहुत कम है और जो एपीआई भारत में बनाया जाता है उसके फ़ाइनल प्रोडक्ट बनने के लिए भी कुछ चीज़ें चीन से आयात की जाती हैं।