टीआरपी डेस्क। World Postal Day 2020 : चलिए आज आप को ले चलते हैं दुनिया के सबसे ऊंचे पोस्ट ऑफिस की सैर पर, इसके लिए आप को करीब पांच हजार मीटर तक ऊंची चढ़ाई करनी होगी। ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर पैदल चलना होगा। नागिन जैसी बल खाती नदियों को पार करना होगा। अगर आप ये सब करने को तैयार हैं…तो चलिए चलते हैं हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी की सैर पर।

स्पीति घाटी धरती पर सबसे ऊंचे ठिकानों में से है जहां इंसान आबाद है। यहां बंजर पहाड़ हैं। बेहद खतरनाक पहाड़ी दर्रे हैं और बलखाती नदियां हैं। करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर आपको महसूस होगा कि आप पहाड़ी रेगिस्तान में पहुंच गए हैं। किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं।

छोटे से गांव हिक्किम में है यह पोस्ट ऑफिस

इसी स्पीति घाटी में बंजर पहाड़ों के बीच स्थित है छोटा सा गांव हिक्किम। इसी गांव में है दुनिया का सबसे ऊंचा डाक खाना। ये पोस्ट ऑफिस आस-पास के कई गांवों के लोगों को बाकि दुनिया से जोड़ता है। लोग यहां अपनी चिट्ठियां डालने और पैसे जमा कराने आते हैं। बहुत से ऐसे बहादुर सैलानी भी होते हैं, जो यहां आते हैं जो दुनिया के सबसे ऊंचे पोस्ट ऑफिस से बाकी दुनिया को चिट्ठी के जरिए संदेश भेजते हैं। ‘ये बहुत मुश्किल काम है। सड़कें हैं नहीं।तो डाक को पैदल ही ढोकर ले जाना पड़ता है।’भारी बर्फबारी के चलते पोस्ट ऑफिस साल के छह महीने तक बंद रहता है।

डाक का अनोखा सफर

वाकई डाकखाने को चलाना आसान नहीं। दो डाकिये रोजाना 46 किलोमीटर पैदल सफर करके डाक लाते-ले जाते हैं और ये सफर न तो सीधा होता है, न आसान। ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते होते हैं। ढलान पर संतुलन बनाना होता है। चढ़ाव तय करने होते हैं। विशाल चरागाहों से गुजरना होता है। तब कहीं जाकर ये डाकिए स्पीति घाटी के शहर कजा पहुंचते हैं।

कजा सड़क मार्ग से राज्य और देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ा हुआ है। यही वो आखिरी प्वाइंट है जो हिक्किम को बाकी दुनिया से जोड़ने का काम करता है। यहां से डाक बसों के जरिए पहाड़ी सड़कों से होती हुई हिमाचल प्रदेश के दूसरे हिस्सों तक भेजी जाती है और वहां से लाई जाती है।

डाकखाने से जुड़ती है दुनिया

बर्फ़ीले पहाड़ी रास्तों से होते हुए डाक का ये सफर पूरी दुनिया में अनोखा है। हिक्किम का पोस्ट ऑफिस चार-पांच गांवों के लिए काम करता है। ये गांव भी बहुत कम आबादी वाले हैं। यहां मोबाइल फोन बमुश्किल काम करता है। इंटरनेट तो है ही नहीं।हिक्किम डाक खाने से जुड़ा हुआ गांव है कोमिक। ये 4 हजार 587 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये सड़क से जुड़े हुए दुनिया के सबसे ऊंचे गांवों में से एक है। कोमिक में केवल 13 घर हैं। एक स्कूल है जिसमें पांच बच्चे पढ़ते हैं। एक पुराना बौद्ध मठ है। खेती लायक जमीन बहुत थोड़ी-सी है जिसमें जौ और हरी मटर की खेती होती है।

यहां के लोग हैं बड़े दिल वाले

स्पीति घाटी के गांव अक्सर बाकी देश से साल के छह महीने कटे रहते हैं। बर्फबारी की वजह से सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। सफर असंभव हो जाता है। हालांकि इस मुश्किल के बावजूद स्पीति घाटी के लोगों के हौसले कायम रहते हैं। जब हम लंगजा गांव के एक घर में गए, तो घर की एक महिला ने कहा कि उसकी जिदगी बेहद शांतिपूर्ण है। उसे इन क़ुदरती चुनौतियों से बहुत फर्क नहीं पड़ता।

स्पीति घाटी में बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं। भारत के सबसे पुराने बौद्ध मठों में से कुछेक यहां हैं। इनमें से कई मठ तो एक हजार साल से भी ज़्यादा पुराने हैं। स्पीति घाटी में स्थित मठ इस घाटी का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है। ये मठ स्पीति नदी के किनारे 4 हजार 166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नदी के इर्द-गिर्द ऊंचे पहाड़ दिखते हैं।

मेल-जोल के ठिकाने हैं मठ

ये बौद्ध मठ स्पीति घाटी की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपरा का अटूट हिस्सा हैं। दुनिया से अलग-थलग इन गांवों के लिए ये मठ मेल-जोल का जरिया हैं। जहां वो इकट्ठे होकर प्रार्थना करते हैं। त्योहार मनाते हैं।

वो द्वीप जहां इस्तेमाल होते हैं पत्थर के सिक्के

कोमिक मठ के बौद्ध भिक्षु सदियों पुरानी परंपरा का पालन करते हैं। वो दिन में ध्यान लगाते हैं और लोगों को दुख-सुख बांटने और दरियादिली का पाठ पढ़ाते हैं। ये लोग समंदर पार स्थित पवित्र स्थलों की तीर्थयात्रा पर भी जाते हैं। सफर के लिए उन्हें अपना पासपोर्ट और वीजा बनवाने में हिक्किम का डाकखाना मदद करता है।

बाहरी दुनिया के लिए खिड़की

भाईचारा, सरल जिंदगी, आध्यात्मिक लगाव और मुश्किल माहौल से ताल-मेल बिठाने की आदत की वजह से यहां के लोग सदियों से बड़े आराम से जिंदगी बसर कर रहे हैं। उन्हें बाहरी दुनिया से वास्ते की जरूरत कम ही पड़ती है।

पांच हजार सालों से जमीन में दफ़्न ये नाव

लेकिन, ग्लोबलाइजेशन की बयार बहते हुए यहां तक पहुंचने लगी है। रोजगार की तलाश में इन पहाड़ी गांवों से बहुत से युवा बड़े शहरों और दूसरे देशों में रहने के लिए चले गए हैं। पर, जो लोग यहां रह रहे हैं, उनके लिए धरती का सबसे ऊंचा डाकखाना आज भी बाकी दुनिया से जुड़ने का जरिया है।

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