टीआरपी डेस्क। छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के लुंड्रा ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम सपड़ा में रहने वाला पहाड़ी कोरवा परिवार सरकारी राशन से सिर्फ इसलिए वंचित हो गए हैं क्योंकि अब तक उनका आधार कार्ड नहीं बन पाया है। दरअसल, उत्तरी इलाके के पहाड़ी मैदानों में बसने वाली पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग आज भी कंदमूल को अपने भोजन का प्रमुख हिस्सा बनाए हुए हैं। इनके पूर्वज सदियों से मैनपाट, सामरी पाट, जारंगपाट, सन्नापाट जैसे पहाड़ी मैदानों में बसे हुए हैं।

भारत सरकार ने विशेष संरक्षित जनजाति का दिया है दर्जा

पहाड़ी कोरवा मूल रूप से सरगुजा, बलरामपुर और जशपुर जिलों में निवासरत हैं और इनकी आबादी बेहद कम है। इस जनजाति की अपनी एक विशेष संस्कृति है। यह आज भी प्रकृति के साथ एक अटूट रिश्ते से बंधे हुए है और पूरी तरह सादा जीवन जीते हैं। यह आज भी अपने पूर्वजों की तरह पहाड़ी जंगलों पर ही निर्भर हैं और कंदमूल इनके दैनिक भोजन का प्रमुख हिस्सा है। इस जनजाति को भारत सरकार ने विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा दिया है और यह राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी हैं।

भूख मिटाने कहां जाएं, कोई रास्ता नहीं था

इस विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों के जीवन स्तर में विकास और उनके संरक्षण के लिए शासन ने तमाम योजनाएं संचालित की हैं, लेकिन आज भी वे शासकीय योजनाओं से वंचित हैं। और तो और सस्ता, सुलभ तरीके से मिलने वाला सरकारी राशन भी छोटी कमियों के कारण इन्हें मिलना मुनासिब नहीं है। ऐसा हाल सरगुजा जिले के लुंड्रा विकासखंड अंतर्गत सपड़ा पंचायत में देखने को मिल जाएगा। कोरोनाकाल ने इनके लिए और भी विषम परिस्थिति बना दी थी। लॉकडाउन के दौर में ये भूख मिटाने कहां जाएं, कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में समझा जा सकता है कि विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए शासन की योजनाएं कितनी कारगर साबित हो रही होंगी।

सरकारी राशन से सिर्फ इसलिए वंचित क्योंकि आधार कार्ड नहीं

सरगुजा जिले के लुंड्रा ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम सपड़ा में रहने वाले पहाड़ी कोरवा परिवार सरकारी राशन से सिर्फ इसलिए वंचित हो गए हैं क्योंकि उनका अब तक आधार कार्ड नहीं बन पाया है। सत्ता परिवर्तन के साथ हर परिवार को सस्ता, निःशुल्क राशन पात्रता के अनुरूप देने की घोषणा भी इनकी दिक्कतों को दूर नहीं कर पाई। आज भी मजदूरी, जलावन बेचकर गुजारा करने वाले 11 पहाड़ी कोरवा परिवार इन हालातों से जूझ रहे हैं, यह सोचकर कि उनके लिए ये योजनाएं बनी ही नहीं हैं।

आधार कार्ड न होने से शासकीय योजनाओं से हो रहे वंचित

कोविड के प्राथमिक दौर में ये दाने-दाने को मोहताज हो गए। राशन कार्ड नहीं होने का गम इन्हें टीस रहा है। सपड़ा ग्राम पंचायत का भेड़िया सरईपानी ऐसा गांव है, जहां के लगभग 65-70 लोगों का आधार कार्ड नहीं बन पाया है। कई ऐसे हैं, जिनका आधार कार्ड नहीं होने के कारण राशन कार्ड में नाम नहीं जुड़ा है। इसके बाद भी पंचायत के किसी जनप्रतिनिधि ने इनकी सुध नहीं ली। पहाड़ी कोरवा परिवार के सदस्य जब राशनकार्ड के लिए दौड़ लगाते थक-हार गए। बाद में पता चला कि बिना आधार कार्ड के उनका राशनकार्ड बनना संभव नहीं है।

आधार कार्ड बनवाने के लिए फार्म भर आवश्यक औपचारिकता पूरी की, लेकिन न तो आधार कार्ड बना न राशन कार्ड। कोरोनाकाल में भी पीडीएस के राशन से इनकी भूख नहीं मिट सकी। कोरोना के प्राथमिक दौर में न तो इनके लिए काम ही सुलभ हुआ न ही ये शासन के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सहूलियतों के हकदार बन पाए।

कोरोना काल में चौपाल ने की मदद

इसकी जानकारी चौपाल संस्था के गंगाराम पैकरा को मिलने के बाद उन्होंने संस्था के सीआरपी का कार्यभार देखने वाले सपड़ा पंचायत के मोतीलाल को इनकी दिक्कतों को दूर करने के लिए आधार कार्ड बनवाने के लिए आवश्यक पहल करने के लिए कहा। ठीक इसी बीच कोरोना को लेकर तालाबंदी की स्थिति बन गई और दफ्तर सहित निजी जन सुविधा केंद्र बंद हो गए। इन हालातों के बीच राशनकार्ड से वंचित पहाड़ी कोरवाओं के सामने आधार कार्ड के बिना न घर के न घाट के जैसी स्थिति बनी रह गई। इन्हें भूखे न रहना पड़े, इसके लिए चौपाल संस्था के गंगाराम पैकरा की पहल पर राशन की व्यवस्था की गई, लेकिन आधार कार्ड नहीं रहने से इन्हें शासकीय सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है।

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