रायपुर। पिछले डेढ़ साल से फरार चल रहे आबकारी विभाग के सेवानिवृत अधिकारी समुंद्र सिंह को आखिरकार इओडब्ल्यू और एसीबी ने गिरफ्तार कर लिया है। उनके खिलाफ महालेखाकार, ईओडब्लू और मुख्यमंत्री को शिकायत की गई थी कि पद पर रहते हुए वे करीब 5000 करोड़ के घोटाले में शामिल रहे।

ईओडब्ल्यू के तात्कालिन चीफ जीपी सिंह व उनकी टीम ने समुंद्र सिंह की गिरफ्तारी का खाका तैयार किया था। खुद को बचाने के लिए समुंद्र सिंह सुप्रीम कोर्ट तक भी जा चुके हैं। मगर विभाग ने कोशिश की कि उन्हें एंटीसिपेटरी बेल न मिल सके।

इतना ही नहीं, कैग रिपोर्ट में आबकारी विभाग में 1500 करोड़ रुपए की अनियमितता को लेकर टिप्पणी भी की गई थी। प्रदेश में सरकार बदलते हीे समुंद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। इनपर इल्जाम है कि इनके इशारे पर शराब की आपूर्ति और उसके ब्रांड और रेट तय होते थे। इसे ही दुकानों में विक्रय के लिए भेजा जाता था। यह शराब चहेते कंपनियों के मालिकों की होती थी।

ठेकेदार भी उन शराबों को दुकानों में भेजते थे। इसके एवज में कमीशन वसूल किया जाता था। साथ ही मुंहमागी कीमत पर इसका विक्रय किया जाता था। दुकानदार भी इसे निर्धारित कीमत से अधिक में बेचते थे। इसकी शिकायत कई बार मुख्यालय स्तर पर की गई थी लेकिन, समुंद्र सिंह द्वारा पूरे मामले को दबा दिया जाता था।

बता दें कि समुंद्र सिंह पर आय से अधिक संपत्ती का भी आरोप है। रायपुर, बिलासपुर, मुंगेली और मध्यप्रदेश के अनूपपुर 8 ठिकानों में ईओडब्ल्यू की टीम छापा मार चुकी है। कार्रवाई में अलग-अलग मकानों में छापे के दौरान समुंद्र सिंह के नाम पर कई मकान-बंगले के दस्तावेज मिले। इसके अलावा पेट्रोल पंप, प्रॉपर्टी व कैश के लेन-देन की जानकारी मिली थी।

प्राइस फिक्सेशन का आरोप

राज्य में 2017 से कुछ चुनिंदा ब्रांड के शराब और बीयर की आपूर्ति ही कराई जा रही थी। इसमें से अधिकांश का उत्पादन भी दुर्ग जिले में किए जाने की जानकारी है। शुरूआती दौर में जानबूझकर इसकी कीमत कम रखी गई थी। लेकिन, कुछ समय बाद अचानक इसकी कीमत बढ़ा दी गई थी। बताया जाता है कि योजनाबध्द तरीके से शुगर फ्री और अन्य नामी शराब को गायब किया गया था। जानबूझकर इसका उठाव नहीं करने पर ब्रांडेड कंपनियों से मालिकों ने अपना विरोध भी दर्ज कराया था। लेकिन, उनकी कोई सुनवाई तक नहीं की गई थी।

रसूख का किया इस्तेमाल

आबकारी विभाग का कोई भी अधिकारी समुंद्र सिंह की रसूख को देखते हुए बिना पूछे निर्णय नहीं लेते थे। 9 वर्ष तक लगातार संविदा नियुक्ति पर रहने के बाद भी सारे वित्तीय अधिकार अपने पास रखे थे। बताया जाता है कि इसी के चलते वह विभाग में अपनी मनमानी करते थे। कमीशन की राशि से अपने करीबी लोगों और रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति भी खरीदी गई थी।

एक्साइज कमिश्नर पद से रिटायर होने के बाद पिछली सरकार के कार्यकाल में संविदा पर 9 साल ओएसडी रहे समुंद्र सिंह के 8 ठिकानों पर ईओडब्लू की टीम ने शुक्रवार सुबह छापे मारे। रायपुर, बिलासपुर अौर मध्यप्रदेश के अनूपपुर में उनके मकानों पर मारे गए छापों के बाद जांच में 20 से ज्यादा बंगले-मकानों के दस्तावेज, अनूपपुर में 70 एकड़ का फार्म हाउस, पेट्रोल पंप अौर बड़ा कैश भी मिला है। देर रात तक जांच चली। जब्ती की जानकारी शनिवार को सार्वजनिक हो सकती है। समुंद्र सिंह संविदा में रहने के बावजूद पिछले एक दशक से परोक्ष रूप से अाबकारी विभाग के सबसे महत्वपूर्ण अफसर बने हुए थे।

सरकार को मिली थीं शिकायतें

  • शिकायत के अनुसार समुंद्र सिंह ने संविदा में रहते हुए आबकारी विभाग में कथित तौर पर करीब 5000 करोड़ रुपए के घोटाले किए।
  • यह शिकायत भी है कि शराब की कीमतों में मनचाही कंपनी के दाम बढ़ाने का खेल खेला। लाटरी सिस्टम से ठेकेदारों के कर्मचारियों को दुकानें दी गईं।
  • शिकायत है कि ठेकेदारों ने अपने कर्मचारियों के नाम से ठेके लिए, लेकिन आयकर को सूचना दिए बिना 100 करोड़ रु. की टैक्स चोरी की।
  • आय से अधिक संपत्ती

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