कोयले की राख लाकर फेंक रहे हैं बस्तियों में

टीआरपी डेस्क। कोयले के चलते कोरबा शहर का उदय हुआ। मगर यही कोयला अब यहां के लोगों के अभिशाप बन गया है। कोयले से बिजली बनाने वाले कारखाने अपने यहां से निकलने वाली राख को इस्तेमाल करने के बजाय कहीं भी फिंकवा रहे हैं। कोरबा में गर्मी के दिनों में पूरा शहर राख से पट जाता है। गली मोहल्लों में राख फेंके जाने के चलते नागरिक परेशान हो चले हैं।

कोरबा शहर को काले हीरे की नगरी, उर्जा नगरी के नाम से पुकारा जाता है। प्रदेश ही नहीं देश भर में सर्वाधिक बिजली उत्पादन करने वाले शहरों में कोरबा जिला शामिल है। मगर यही उपलब्धि कोरबा जिले के लोगों के लिए परेशानी बन गई है। जहां एक ओर कोयले की अधिकता है, वहीं दूसरी ओर यहां की जीवनदायिनी हसदेव नदी है। बता दें कि 50 के दशक में कोयला और पानी की उपलब्धता के चलते यहां बिजली कारखानों की शुरुआत की गई। राज्य सरकार के अलावा एनटीपीसी, लैंको और बालको सहित अन्य कई निजी घरानों के बिजली कारखाने हैं ।

काले हीरे की नगरी में लोगों का भविष्य काला

कोयले से बिजली बनाने की प्रक्रिया में बिजली के लिए जितने कोयले का इस्तेमाल किया जाता है। उतनी ही राख उत्सर्जित होती है। इसे खपाने के लिए बिजली कारखाना प्रबंधकों द्वारा बड़े-बड़े ऐश डाइक बनाए गए हैं। जहां कोयले की राख भरी जाती है, लेकिन ज्यादा उत्पादन के फेर में बड़ी मात्रा में कोयले का इस्तेमाल हो रहा है। इस वजह से बहुत जल्द ही कारखानों के ऐश डाइक भर जाते हैं । इसके बाद शुरू होता है राख को खपाने का खेल। कारखाना प्रबंधक ट्रांसपोर्टरों को राख ढोने का ठेका तो देते हैं। मगर राख कहां पर फेंकी जाए, इसका ठिकाना नहीं होता। जिसके कारण शहर के एक इलाके में यहां-वहां राख के ढेर नजर आते हैं। कोरबा की दादर के आपस की बस्तियों के अलावा दर्री के झाबू ग्राम के आसपास भी राख खुले में फेंके जाने की शिकायत ग्रामीणों ने कि है।

ट्रांसपोर्टरों की गलती, या कारखाना प्रबंधन की..?

दादर खुर्द और आसपास की बस्तियों में फेंकी जा रही राख के संबंध में जब लोगों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि कौन राख फेंक रहा है इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है। यहां रात के अंधेरे में ट्रक आते हैं और कहीं भी रख को डंप करके चले जाते हैं। परेशान लोग बताते है कि राख कुछ गीली होती है, मगर सूखने के बाद यहां वहां उड़ने लगती है, वहीं वाहनों की गुजरने के बाद राख यदा-कदा उड़कर लोगों के घरों में घुस रही है। यहां से गुजरने वाले दूसरे वाहन चालक भी इससे परेशान हो रहे हैं।

क्या है फ्लाई ऐश की उपयोगिता का नियम?

देशभर में कोयला आधारित बिजली कारखानों से निकलने वाली राख को ऐश डाइक में रखने के साथ ही इसके 100% इस्तेमाल का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही दे दिया है। मगर इसका पालन कहीं भी नहीं हो रहा है, क्योंकि राख भारी मात्रा में निकल रही है। राज्य सरकारों ने राख को लो लाइंग एरिया भरकर मिट्टी से पाटने की छूट दे रखी है। जिसका फायदा बिजली कारखाना प्रबंधक उठा रहे हैं। इनके द्वारा शहर और आसपास के इलाकों में गड्ढों को खोजा जा रहा है जहां राख फेंकने की अनुमति पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा दी जाती है।

विधायक कंवर ने उठाया था मामला…

कोरबा जिले के रामपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक ननकीराम कंवर ने पूर्व में अपने इलाके में फेंकी जा रही कोयले की राख का विरोध किया था। कोरबा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव के पास पत्थर खदान केे गड्ढे को राख से ट्रांसपोर्टर के माध्यम से भरवाया जा रहा था, जिसका विरोध ग्रामीणों ने किया। इसके बाद भी राख खेतों में भी फेंकी जाने लगी।

जमीन पर कब्जे का भी चल रहा है खेल..!

दादर और आसपास के इलाके में फेंकी जारी राख के संबंध में चर्चा के दौरान ग्रामीणों ने बताया कि कुछ लोग वन विभाग और राजस्व की जमीन पर कब्जा करने की नियत से गड्ढों को राख से भर रहे हैं और उसे समतल करके इस्तेमाल के लायक बना रहे हैं। डीएफओ कोरबा गुरुनाथन एन ने बताया कि इस संबंध में शिकायत मिली है जिसकी जांच राजस्व अमले से कराई जा रही है, इस दौरान जो भी तथ्य सामने आयेंगे, उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी।

गर्मी भर परेशान रहता है पूरा शहर

कोरबा शहर की बात करें तो इसके चारों ओर बिजली के कारखाने हैं और इन कारखानों की राख के लिए बड़े-बड़े ऐश डाइक बनाए गए हैं, इस डाइक को गीला रखने का नियम है मगर कारखाना प्रबंधन द्वारा राख को यूं ही छोड़ दिया जाता है जिसके चलते गर्मी के दिनों में जरा सी आंधी चलने पर राख का गुबार उड़कर शहर की ओर आ जाता है, इससे पूरा इलाका प्रदूषित हो जाता है। यही वजह है कि कोरबा जिले में सर्वाधिक लोग सांस और चर्म से संबंधित रोगों से पीड़ित हैं ।पूर्व में प्रशासन की कड़ाई के चलते राख के निपटारे के काम में तेजी आई थी और शहरी इलाकों में राख का फेंकना बंद हो गया था, लेकिन इन दिनों फिर से यह प्रक्रिया चालू हो गई है जिस पर नकेल कसने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है।

बालको ने राख हटाने के लिए 15 दिन का समय मांगा

कोरबा और आसपास के इलाकों में खुले में राख फेंके जाने के मामले में पर्यावरण संरक्षण अधिकारी आरआर सिंह ने इलाके का सर्वे कराया। जिसमें यह तथ्य सामने आया है कि पूरी राख बालको द्वारा अधिकृत ट्रांसपोर्टर ब्लैक स्मिथ द्वारा फेंकी गई है। टीआरपी न्यूज से चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि बालको के संबंधित अधिकारियों को जहां भी रख फेंकी गई है वहां का स्थल निरीक्षण करा दिया गया है। बालकों ने अपनी सफाई में कहा है कि उनके द्वारा ब्लैकस्मिथ नामक संस्था को राख फेंकने का ठेका दिया गया है। जिसके राख को निर्धारित स्थल की बजाय यहां-वहां फिंकवा दिया गया है। बालको ने राख हटाने के लिए 15 दिन का समय मांगा है

निगम आयुक्त ने लिया संज्ञान

नगर निगम कोरबा क्षेत्र में बिजली कारखानों की रख फेंके जाने की जानकारी मुझे मिली है। इस संबंध में जोन कमिश्नरों की बैठक में यह जानने का प्रयास किया गया कि राख किसकी अनुमति से फेंकी जा रही है। वे इस संबंध में इलाके के एसडीएम को पत्र लिखकर जांच कराएंगे और इस संबंध में जो भी तथ्य सामने आयेंगे। उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
एस जयवर्धन, सीईओ, नपानि कोरबा

देश के सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में से एक

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और कोरबा ऐसे शहरों में से हैं जो देश के सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में शुमार हैं। कोरबा के बिजली के कारखाने और कोयले के खदानों के चलते भारी वायु प्रदुषण होता है। इस पर अंकुश लगाने के लिए अनेकों प्रयास किये गए। नियम क़ायदे भी बनाये गए मगर नतीजा सिफर रहा। हालात यह हैं की कोरबा शहर और आस पास का इलाका बुरी तरह प्रदूषित है। इसके लिए ना तो प्रशासन कुछ कर रहा है और न ही राजनेता। इसी का फायदा कारखानों के प्रबंधक उठा रहें हैं। जो कारखानों से जहरीला धुआं तो छोड़ते ही हैं अब तो शहर के किसी भी इलाके में राख फेंकी जा रही हैं और पर्यावरण संरक्षण मण्डल केवल दिशा निर्देश जारी कर रहा है और प्रदूषण फ़ैलाने वाले कारखानों पर कोई भी वैधानिक कार्रवाई नहीं कर रहा हैं।

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