टीआरपी डेस्क। म्यांमार में तख्तापलट हो चुका है। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू (Aung San Suu Kyi) की को फिर से जेल में डाल दिया गया है और सेना ने सत्ता अपने हाथों में ले ली है।

दुनियाभर में इस कदम की आलोचना हो रही है। लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसके जवाब में सेना ने टैंक और बंदूकधारी जवानों को उतार दिया है। इन सब के बीच म्यांमार की सीमा से सटे बांग्लादेश में लाखों लोगों को मारे जाने (Myanmar Coup Rohingya Refugees afraid of Military) का डर सताने लगा है।
करीब 11 लाख की आबादी वाला एक शहर पड़ोसी मुल्क में हो रही उठापठक की वजह से कांप रहा है। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार जिले में कुटुपालोंग शरणार्थी कैंप हैं। जब म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों को बाहर निकालना शुरू हुआ, तो उन्होंने बांग्लादेश में शरण ली। करीब 11 लाख रोहिंग्या इस समय बांग्लादेश में हैं। म्यांमार में तख्तापलट को लेकर उनकी अलग-अलग राय है। अधिकतर तख्तापलट के खिलाफ हैं। मगर कुछ ऐसे भी हैं, जो इस देश की सर्वोच्च नेता आंग सांग सान सू की से सहानुभूति नहीं रखते। इसका कारण यही है कि रखाइन प्रांत में आंग सान के सत्ता संभालने के बावजूद सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों का कत्लेआम किया था। मगर उन्होंने एक भी शब्द नहीं बोला।
तख्तापलट के बाद बची खुची उम्मीदें भी धूमिल
वो इस बात से बेहद दुखी हैं कि म्यांमार में जब लोकतंत्र आया तब भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला। 2017 में रखाइन प्रांत में भीषण कत्लेआम हुआ और उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। एक मीडिया ने शरणार्थी कैंप में रह रहे लोगों से बातचीत की। लोगों का कहना है कि सेना के तख्तापलट के बाद बची खुची उम्मीदें भी धूमिल हो गई हैं। उन्हें डर है कि अगर ऐसे में वह अपने घर लौटते हैं, तो पक्का मौत के घाट उतार दिए जाएंगे। सेना हमें किसी भी हालत में म्यांमार में वापस घुसने नहीं देगी।