टीआरपी बसंत पंचमी स्पेशल: इस दिन श्रीराम ने खाए थे शबरी के बेर, छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण से जुड़ा है प्रसंग
टीआरपी बसंत पंचमी स्पेशल: इस दिन श्रीराम ने खाए थे शबरी के बेर, छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण से जुड़ा है प्रसंग

टीआरपी डेस्क। ऋतुराज बसंत के आगमन पर विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती को समर्पित बसंत पंचमी का त्योहार मंगलवार 16 जनवरी को मनाया जाएगा। मान्यता है कि भगवान श्रीराम और लक्ष्मण शबरी के जूठे बेर यहीं खाए थे और उन्हें मोक्ष प्रदान करके इस घनघोर दंडकारण्य वन में आर्य संस्कृति के बीज प्रस्फुटित किए थे।

सौंदर्य और चतुर्भुजी विष्णु की मूर्तियों की अधिकता के कारण स्कंद पुराण में इसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। हर युग में इस नगर का अस्तित्व रहा है और सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात यह नगर मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और माता शबरी की साधना स्थली भी रहा है।

शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए “शबरी-नारायण” नगर बसा है। भगवान श्रीराम का नारायणी रूप आज भी यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। कदाचित् इसी कारण इसे “गुप्त तीर्थधाम” कहा गया है। याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में इसका उल्लेख है। भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से पुरी (उड़ीसा) ले जाया गया था। प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं।

प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से जाने वाला यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द रहा है। यहां शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्मो की मिली जुली संस्कृति रही है। छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र शिवरी नारायण के नाम से जाना जाता है।

पर्यटन की दृष्टि से स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण

शिवरीनारायण मंदिर को नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। उक्त मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला एवं मुर्तिकला का बेजोड नमूना है। ऎसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था। 9वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियों की स्थापना है।

मंदिर की परिधि 136 फीट तथा ऊंचाई 72 फीट है जिसके ऊपर 10 फीट के स्वर्णीम कलश की स्थापना है शायद इसीलिये इस मंदिर का नाम बडा मंदिर भी पडा। सम्पूर्ण मंदिर अत्यन्त सुंदर तथा अलंकृत है जिसमे चारों ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है। मंदिर अत्यंत भव्य दिखायी देता है।

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