'राइट टु रिजेक्ट' पर सुनवाई के लिए SC तैयार, कहा- 'NOTA को पड़ें ज्यादा वोट तो सभी उम्मीदवार खारिज'
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टीआरपी डेस्क। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में कहा गया है कि अगर किसी चुनाव में NOTA को सबसे ज़्यादा वोट पड़ें, तो चुनाव रद्द माना जाना चाहिए। साथ ही उस सीट पर नए सिरे से चुनाव होना चाहिए। यह नोटिस कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग को चीफ जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस रामसुब्रमण्यन की बेंच ने जारी किया है।

दरअसल, यह मामला लोगों को ‘राइट टु रिजेक्ट’ देने के अधिकार से जुड़ा है। कोर्ट में BJP नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि राइट टु रिजेक्ट और नए चुनाव करने का अधिकार मिलने से लोगों को अपनी नाराजगी जाहिर करने का अधिकार मिलेगा। अगर मतदाता चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार की पृष्टभूमि और उनके काम से खुश नहीं हैं, तो वह NOTA का चुनाव कर सकते हैं। जो मतदाता के अधिकार को और मजबूत करेगा।

NOTA यानी ‘इनमें से कोई नहीं’

इसमें याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कोर्ट को बताया कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने वोटर को ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी NOTA का बटन दबाने का अधिकार दिया था। कोर्ट ने तब यह माना था कि जो मतदाता किसी भी उम्मीदवार को नापसंद करने के चलते मतदान के लिए नहीं आते हैं। उन्हें यह बताने का विकल्प दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद नोटा का विकल्प तो लोगों को दे दिया गया, लेकिन व्यवहारिक रूप से इसकी कोई अहमियत नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसका चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता है।

50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नोटा को पड़ें, तो चुनाव रद्द

मेनका गुरुस्वामी ने सुनवाई के दौरान ने कहा कि अगर किसी क्षेत्र में 100 में से 99 वोट नोटा को पड़ जाए, तब भी उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। एक वोट पाने वाले प्रत्याशी को विजेता घोषित कर दिया जाएगा। चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता और राजनीतिक पार्टियों को अच्छे उम्मीदवार मैदान में उतारने को प्रेरित करने के लिए राइट टू रिजेक्ट की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। कोर्ट अगर चाहे तो इसके लिए नोटा को पड़ने वाले वोटों का प्रतिशत भी तय कर सकता है। जैसे अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नोटा को पड़ें, तो चुनाव रद्द घोषित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब


इस दौरान तीन जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने सवाल किया। उन्होंने पूछा कि अगर ऐसा होता है, उस जगह कोई भी उम्मीदवार नहीं जीतेगा, वह जगह खाली रह जाएगी। ऐसे में विधानसभा और संसद का गठन कैसे होगा? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अगर NOTA पर वोट ज्यादा पड़ते हैं। कोई उम्मीदवार नहीं जीतता है। तो समय रहते दोबारा चुनाव कराए जा सकते हैं। ऐसे में सब नए उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे।

बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में बताया गया है कि 1999 में पहली बार विधि आयोग ने मतदाताओं को राइट टू रिजेक्ट देने की सिफारिश की गई थी। इसके बाद चुनाव आयोग ने कई बार मतदाताओं को यह अधिकार देने की पैरवी की। यहां तक कि खुद सरकार की तरफ से चुनाव सुधार पर गठित एक कमिटी ने 2010 में नोटा और राइट टू रिजेक्ट का प्रावधान करने के पक्ष में रिपोर्ट दिया, लेकिन कोई भी कदम नहीं उठाया गया।

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