छत्तीसगढ़ संगठन के पुराने सिंडीकेट से 'मात' खा गए बीजेपी के अमित 'शाह', 2018 वाली गलती 2023 में भाजपा पर पड़ सकती है भारी
छत्तीसगढ़ संगठन के पुराने सिंडीकेट से 'मात' खा गए बीजेपी के अमित 'शाह', 2018 वाली गलती 2023 में भाजपा पर पड़ सकती है भारी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश सरकार ने 17 जून 2021 को अपने कार्यकाल के ढाई साल सफलता पूर्वक पूरे कर लिए, अब बाकी के ढाई साल चुनावी सरगर्मी वाले होने हैं। ऐसे में कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा आक्रमक तो नजर आ रही है मगर ​संगठन में जिन चेहरों को प्रदेश की जनता पिछले 15 सालों से देख रही है उन चेहरों पर भरोसा नहीं कर पा रही है।

गाहे-बगाहे भाजपा के अंदरखाने में इसकी चर्चा भी रही मगर, जिसने आवाज उठाई उसे किनारे लगा दिया गया, हैरानी की बात तो ये है कि भाजपा आलाकमान जमीनी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देने की बात पर अब तक कोई फैसला नहीं ले सका है। यही कारण है कि साल 2013 में 49 सीट जीतने वाली भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई।

बावजूद इसके भाजपा के प्रदेश संगठन में सत्ता के करीबी रहे चेहरों को फिर से 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत दिलाने की जिम्मेदारी सौंपना बीजेपी नेतृत्व की असल परीक्षा है जो पिछले विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से फेल साबित हुई।

सत्ता चली गई तो संगठन में काबिज हो गया सिंडीकेट

आपको याद दिला दें कि 2003 के विधानसभा चुनाव के समय प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष डॉ रमन सिंह थे उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से विष्णु देव साय, रामसेवक पैकरा, धरमलाल कौशिक, विक्रम उसेंडी अध्यक्ष बने, अब एक बार फिर विष्णुदेव साय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं।

गौर से देखें तो डॉक्टर रमन से लेकर आज के विष्णु देव की प्रदेश टीम और प्रदेश कार्यालय की टीम में वहीं 90% पुराने चेहरे शामिल हैं जो सत्ता के करीबी रहे हैं। इनमें से कुछ तो मंत्रिपरिषद में थे, अब सरकार चली गई तो कुछ प्रदेश पदाधिकारी बन बैठे तो बाकी प्रदेश प्रवक्ता बन गए। कुछ करीबी लोगों को कार्यालय के सह प्रभारी बना दिया गया। कुल मिलाकर 2003 से शुरू हुआ भाजपा का सिंडिकेट 2021 में भी भाजपा को अपने प्रभाव से रखा हुआ है, ऐसा हाल उस पार्टी का है जिसे केडर बेस पार्टी माना जाता है।

संगठन चुनाव में अब तक मची हुई है रार

बता दें भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को एक्टिव करने के लिए प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी डी पुंदेश्वरी देवी और शिवप्रकाश को सौंपी है। दोनों नेताओं ने प्रदेश का दौरा कर जमीनी कार्यकर्ताओं को टटोला भी, जिसमें कार्यकर्ताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई। कार्यकर्ताओं का कहना था कि पद परिक्रमा करने वालों को ही पदाधिकारी बना दिया गया।

संगठन चुनाव के नाम पर जिस प्रकार से सत्ता के करीबी लोगों ने खेलखेला उससे दोनों नेता समझ चुके हैं कि छत्तीसगढ़ भाजपा का केडर ‘बेस’ जमीनी नहीं सत्ता का करीबी है। और तो और संगठन के कई पदों में नियुक्ति ही नहीं हो पाई जिन पर नियुक्ति हुई उससे कार्यकर्ता ही नाराज हैं। ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की नैया अभी से अधर में नजर आ रही है।

लगातार घटते वोट प्रतिशत से अंजान नहीं है भाजपा नेतृत्व

आपको याद दिला दें कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आए थे तब विधायक और सांसदों की बैठक के दौरान जब वे लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बारे में मंथन कर रहे थे तब अधिकांश सांसदों विधायकों ने कहा कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति दयनीय होती जा रही है। केंद्रीय नेतृत्व इसको संज्ञान में लें नहीं तो 2018 में छत्तीसगढ़ में भाजपा के हाथ से सत्ता चली जाएगी।

भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष को उसी बैठक में बताया गया था कि 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का प्रतिशत मात्र 2.5 है वहीं 2008 में भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का प्रतिशत 1.5 रह गया है। यानि 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का और कांग्रेस का प्रतिशत जबरदस्त गिरावट आई थी और वोटों का प्रतिशत का अंतर मात्र.72 प्रतिशत रह गया था।

अमित शाह को बताया गया कि 2003 में छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 52 सीटों पर भाजपा चुनाव जीती थी 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 सीटें जीती, 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से 49 सीटों पर अपना दबदबा बनाए रखा मगर, भाजपा की सीटें भी लगातार कम हो रही हैं। यह भी उन्हें बताया गया था और नेतृत्व बदलने की मांग की गई थी लेकिन, केंद्र ने ध्यान नहीं दिया और आखिरकार 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथ से सत्ता फिसल गई।

गलतियों से सबक नहीं लेना चाहता भाजपा नेतृत्व?

 

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने अपने ढाई पूरे करते ही चुनावी मोड में आ गई है। संगठन पदाधिकारी,पार्टी प्रवक्ताओें और कार्यकर्ताओं के प्रशि​क्षिण का दौर भी शुरू हो चुका है वहीं भाजपा अभी भी अपने कार्यकर्ताओं की दिल की बात समझ नहीं पाई है। ऐसे में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अभी भी कोई फैसला नहीं ले सका तो 2023 में भी ऐसे ही परिणाम सामने आ सकते हैं,जैसे 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान सामने आए थे।

फैक्ट फाइल
देखें भाजपा के प्रदेश अध्यक्षों की टीम की सूची

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