धरती के मानचित्र में आया नया परिवर्तन, दुनिया को मिला एक और महासागर
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टीआरपी डेस्क। हमारी धरती का 75% हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। जिनमें सात महाद्वीपों (seven continents) और चार महासागरों (Four Ocean) के साथ धरती जीवन का आधार बनी हुई है। लेकिन नैशनल जियोग्राफिक के अनुसार धरती में अब महासागर चार नहीं बल्कि पांच (Fifth Ocean of the World) हैं। हालांकि यह सागर तो पहले से था लेकिन उसे अब पांचवें महासागर की मान्यता मिली है। यह मान्यता नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने दी है।

एजुकेशन सेक्टर पर पड़ेगा असर

बता दें, पांचवें महासागर का नाम साउदर्न महासागर (Southern Ocean) है, जो कि अंटार्कटिका में है। नैशनल जियोग्राफिक सोसायटी जियोग्राफर (National Geographic Society Geographer) अलेक्स टेट (Alex Tate) ने बताया कि अब तक वैज्ञानिक अंटार्कटिका दक्षिणी महासागर को अलग यानी पांचवा महासागर मानते रहे है। लेकिन कभी अंतरराष्ट्रीय सहमति नहीं बन पाई, जबकि दुनिया का यह अलग हिस्सा बहुत खास है और उसे आर्कटिक, अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागर के साथ जगह मिलनी चाहिए।

साथ ही एलेक्स टेट ने कहा कि इसका सबसे बड़ा असर एजुकेशन सेक्टर पर पड़ेगा। स्टूडेंट्स साउदर्न ओशन के बारे में नई जानकारियां हासिल करेंगे। इसे भी सभी देशों में मान्यता मिलेगी। इसे अलग-अलग देशों के भूगोल और विज्ञान की किताबों में शामिल किया जाएगा। इसकी खासियत और मौसम के बारे में पढ़ाया जाएगा।

1915 में अंटार्कटिका को नक्शे में किया गया था शामिल

NGS के आधिकारिक जियोग्राफर एलेक्स टेट बताते हैं कि बहुत सालों तक वैज्ञानिकों ने साउदर्न ओशन को मान्यता नहीं दे रहे थे, इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी तरह का समझौता नहीं हुआ था। इसलिए इसे हम आधिकारिक तौर पर महासागर की कैटेगरी में नहीं रख पा रहे थे। हालांकि अंटार्कटिका को भी नक्शे में 1915 में शामिल किया गया था, लेकिन NGS ने बाद में चार महासागरों को सीमाओं में बांधा। जिन्हें महाद्वीपों की सीमाओं के आधार पर नाम दिया गया।

8 जून को नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने दी मान्यता 

पांचवां महासागर यानी साउदर्न ओसन में पानी काफी ठंडा है, क्योंकि यहां पर सिर्फ बर्फीली चट्टानें, हिमखंड और ग्लेशियर हैं। यह महासागर अंटार्कटिका के तट से 60 डिग्री दक्षिण की ओर है और दूसरे देशों से किसी महाद्वीप नहीं बल्कि अपने करंट की वजह से अलग होता है। इसके अंदर आने वाले इलाका अमेरिका से दोगुना है। 8 जून को वर्ल्ड ओशन डे पर नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी (NGS) ने इसे पांचवें महासागर की मान्यता दी।

पूरी दुनिया के महासागरों में ACC का पानी 

वैज्ञानिकों ने बताया कि ACC का निर्माण 3.4 करोड़ साल पहले तब हुआ था। जब दक्षिण अमेरिका से अंटार्कटिका अलग हुआ था। यही पानी दुनिया के बॉटम में बहता रहता है। आज के समय में ACC का पानी पूरी दुनिया के महासागरों में बहता है। यह पूरे अंटार्कटिका के चारों तरफ घेर कर रखता है। इसे ड्रेक पैसेज (Drake Passage) कहते हैं। यहीं पर स्कोटिया सागर (Scotia Sea) कहते हैं। यह दक्षिण अमेरिका के केप हॉर्न और अंटार्कटिका प्रायद्वीप के बीच में है। इसलिए ACC में जितना पानी बहता है, वह साउदर्न महासागर का ही है।

दक्षिणी महासगर में बेहद अनोखे जलीय ईकोसिस्टम

ACC अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर से पानी खींच कर एक वैश्विक कन्वेयर बेल्ट का काम करता है। यह धरती की गर्मी को कम करता है। इसकी वजह से ठंडा पानी समुद्र की गहराइयों में कार्बन जमा करता है। इसी वजह से हजारों समुद्री प्रजातियां ACC के पानी में रहना पसंद करती हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का असर भी पड़ रहा है।

नैशनल जियोग्राफिक एक्सप्लोरर एनरिक साला (National Geographic Explorer Enrique Sala) ने बताया है कि दक्षिणी महासगर में बेहद अनोखे और नाजुक जलीय ईकोसिस्टम (Aquatic Ecosystem) पाए जाते हैं। जहां वेल, पेंग्विन्स और सील्स जैसे जीव रहते हैं। ऐसी हजारों प्रजातियां हैं जो सिर्फ यहीं रहती हैं, और कहीं नहीं पाई जातीं। इस क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधियों का काफी असर पड़ा है। ऐसे में संरक्षण की जरूरत के चलते भी इसे अलग से मान्यता देना अहम हो जाता है।

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