राफेल विमान
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टीआरपी डेस्क। भारत के साथ 5900 करोड़ रुपए के राफेल विमान सौदे में कथित भ्रष्टाचार और लाभ पहुंचाने के मामले में फ्रांस के एक न्यायाधीश को बहुत संवेदशील न्यायिक जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। फ्रांस की समाचार वेबसाइट ‘मीडिया पार्ट ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी लगातार भाजपा के खिलाफ हमलावर रुख अपनाए हुए है। वहीं इस रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि वह सामने आएं और ‘राफेल घोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने का आदेश दें।

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उन्होंने संवाददाताओं से कहा, फ्रांस में जो ताजे खुलासे हुए हैं, उनसे साबित होता है कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार हुआ। कांग्रेस और राहुल गांधी की बात सही साबित हुई। अब यह घोटाला सबके सामने आ चुका है। बहरहाल, इस मामले पर सरकार या भाजपा की तरफ से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

राहुल ने कहा, चोर की दाढ़ी में तिनका

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इशारों इशारों में ट्वीट करके कहा, ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’। हालांकि राहुल गांधी शुरुआत से ही राफेल डील को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। वहीं भाजपा और सरकार की तरफ से आरोपों को कई मौकों पर खारिज किया गया है।

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14 जून को जांच आरंभ

जानकारी अनुसार, दो सरकारों के बीच हुए इस सौदे को लेकर जांच गत 14 जून को औपचारिक रूप से आरंभ हुई। इस सौदे पर फ्रांस और भारत के बीच 2016 में हस्ताक्षर हुए थे। वहीं वेबसाइट की रिपोर्ट में कहा गया, भारत को 36 राफेल विमान बेचने के लिए 2016 में हुए 7.8 अरब यूरो के सौदे को लेकर फ्रांस में संदिग्ध भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच आरंभ हुई है।

वहीं फ्रांसीसी वेबसाइट ने कहा, दो सरकारों के बीच हुए इस सौदे को लेकर 14 जून को बहुत ही संवेदनशील न्यायिक जांच औपचारिक रूप से आरंभ हुई। मीडिया पार्ट से संबंधित पत्रकार यान फिलिपीन ने कहा कि 2019 में दायर की गई पहली शिकायत को पूर्व पीएनएफ प्रमुख की ओर से दबा दिया गया था।

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अप्रैल महीने में इस वेबसाइट ने फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी की जांच का हवाला देते हुए दावा किया था कि राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दासो एविशन ने एक भारतीय बिचौलिए को 10 लाख यूरो दिए थे। दसॉं एविएशन ने इस आरोप को खारिज कर दिया था और कहा था कि अनुबंध को तय करने में कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। बीजेपी की अगुवाई वाली राजग सरकार ने इस विमान सौदे पर 23 सितंबर, 2016 को हस्ताक्षर किया था।

सवालों के घेरे में अनिल अंबानी की भूमिका

जानकारी अनुसार, अनिल अंबानी के रिलायंस समूह द्वारा निभाई गई केंद्रीय भूमिका को देखते हुए आपराधिक जांच में दोनों कंपनियों के बीच सहयोग की प्रकृति की भी जांच की संभावना है। नौ नवंबर 2015 को दासो के सीईओ एरिक ट्रैपियर और रिलायंस समूह के प्रमुख अनिल अंबानी ने एक रणनीतिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। जिसके बाद दोनों कंपनियों ने भारत में ‘बिक्री के लिए’ एक परियोजना शुरू की। जिसके काम में ‘विमानों को असेंबल करके इसे अंतिम रूप देना’ शामिल होगा और यह एक संयुक्त उपक्रम कंपनी होगी।

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बता दें, फ्रांस की पब्लिक प्रॉसिक्यूशन सर्विसेज की फाइनेंशियल क्राइम ब्रांच (PNF) ने कहा कि इस सौदे को लेकर लगाए गए भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप की जांच की जाएगी। यह कदम तब उठाया गया है जब फ्रांस की एक एनजीओ शेरपा ने मामले को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी और फ्रेंच पब्लिकेशन मीडियापार्ट ने इस मामले कई रिपोर्ट प्रकाशित की थी। राफेल डील को लेकर साल 2018 में भी शेरपा ने शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन तब पीएनएफ ने उसे खारिज कर दिया था।

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