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झिलमिलाती आंखों से संवार रहे भविष्य, धान की अनोखी राखियां बना रहे दिव्यांगजन

रायपुर। कहते हैं की भगवान अगर हमें शरीर से थोड़ा कमजोर करता है तो कोई न कोई हुनर आपके अंदर जाग्रत कर देता है। दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो जरा सी परेशानी में हताश हो जाते हैं और कई लोग तो आत्महत्या जैसी घटना को अंजाम दे देते हैं। मगर राजधानी रायपुर में ‘दिव्यांग उत्थान’ एक ऐसी जगह है जहां निःशक्तजन हताश न होकर अपने हुनर से जीवन जी रहे हैं और अपने सपने पूरे करने के लिए किसी के मोहताज नहीं है।

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हुनर ऐसा की जो आम लोग भी न कर पाएं

‘दिव्यांग उत्थान’ केंद्र गौरव पथ पर स्थित है और यहाँ करीब 20 से अधिक निःशक्त बच्चे रहते हैं। इसमें ऐसे लोग शामिल हैं जो या तो दृष्टिबाधित हैं या मूकबधिर। मगर उनके अंदर इतना हौसला है कि वे अपनी कमजोरी को अपने सपने के सामने नहीं आने देते। ऐसा ही कुछ कर रहे हैं वे रक्षाबंधन के पर्व पर। आगामी दिनों में राखी का त्यौहार आ रहा है इसको देखते हुए केंद्र की बच्चियों ने धान की राखियां बनानी शुरू की हैं। ये राखियां इतनी सुंदर हैं की देखने वाला तारीफ किए बिना नहीं रह सकता।

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मशरूम का भी करते हैं उत्पादन

‘दिव्यांग उत्थान’ केंद्र की गिरिजा जलक्षत्री ने बताया की समाज में ऐसे कई लोग हैं जो शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं या जन्मजात निःशक्त होते हैं। ऐसे लोग अपने आपको दूसरों से कम आंकने लगते हैं। हम लोगों का प्रयास रहता है कि दिव्यांगजन को एक प्लेटफॉर्म देकर उनके हुनर को तराशकर एक मुकाम दिया जाए। हमारे केंद्र में दिव्यांग बच्चे हैं जो अपने सपने पूरे कर रहे हैं। हम लोग उन्हें मोटिवेट करते हैं और कई बच्चे ऐसे हैं जो बस्तर क्षेत्र के हैं वे मशरूम का उत्पादन भी घर मे ही कर रहे हैं। साथ ही वर्तमान में धान की राखी बना रहे हैं। हम लोगों का प्रयास है की वे अपने पैरों पर खड़े होकर अपने मुकाम को हासिल करें।

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धान की अनोखी राखियां

छत्तीसगढ़ को जहा धान का कटोरा कहा जाता हैं । बस्तर आर्ट लोगों के दिलों को जीत रहा है। संस्थान में दिव्यांगजन ज्वेलरी बना रहे हैं वहीँ अब राखी के पर्व पर इनके द्वारा धान की राखियों का निर्माण भी किया जा रहा हैं। हालही में 500 राखियों बनाने के लिए भी ऑडर मिला हैं इनका निर्माण ये धान के दानों का उपयोग कर बना रहे हैं।

3 लाख से भी अधिक की कमाई

केंद्र का संचालन गिरिजा जलक्षत्री द्वारा किया जा रहा हैं। बताती हैं की समाज का नजरिया आज भी दिव्यांग लोगों को लेकर पिछड़ा हुआ है। आज समाज हमें बाकि लोगो की तरह नहीं देखता हैं। अब भी विकलांग लोगों को वो मान-सम्मान नहीं मिला हैं जो मिलना चाहिए। हमने भी ये संस्थान ऐसे लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 2018 में केवल 2 लोगों ने मिलकर मात्र 3 हजार रूपये के साथ इसकी शुरुआत की थी और वर्तमान में 20 दिव्यांग लोग मिल कर काम कर रहे हैं, जिन्हे हमारे द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता हैं, जिसमे उन्हें निरमा, फिनाइल, ज्वेलरी व राखी बनाना सिखाया गया जाता हैं। जिससे वो खुद सक्षम बने और बाकि ऐसे लोगों की भी मदद कर पाए। विगत तीन वर्षो में न केवल हमसे इतने लोग जुड़े वही इन लोगों ने अपनी मेहनत से आज 3 लाख से भी अधिक की कमाई की है।

ज्वेलरी बनाने का काम दो समहू मिलकर करते है, रोशनी महिला दिव्यांग स्वम सहायता समूह।नव-चेतना दिव्यांग स्वम सहायता समूह। जिनके साथ ये सभी लोग विगत वर्षो से जुड़ कर काम कर रहे हैं। इसके अलावा सीमा भतरिया ,सुरेखा सोनकर, तुलसी सोनकर,राजनंदनी साहू,उदय बंजारे,सरिता धीवर,ज्योति सोनकर,दिव्या धीवर,मीरा महोबिया, सोमनाथ गुप्ता, ऋषि यादव,हरीश धीवर,जीतेन्द्र सिन्हा,कमल राजपूत, रेवती राजपुत,नेहा ढीमर,नीलू,सतीश शामिल हैं।

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